बांग्लादेश में शेख हसीना लगातार चौथी बार बनेगी PM, चुनाव में अवामी लीग ने 300 में से 204 सीटें जीतीं

बांग्लादेश की मौजूदा पीएम शेख हसीना लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने जा रही हैं… रविवार 7 जनवरी को हुए आम चुनाव में हसीना की पार्टी अवामी लीग ने संसद की 300 में से 204 सीटें जीत लीं। इस बार 299 सीटों पर वोटिंग हुई थी।

हसीना ने लगातार आठवीं बार चुनाव जीता

वहीं, हसीना ने लगातार आठवीं बार चुनाव जीता। गोपालगंज-3 सीट से उन्होंने बांग्लादेश सुप्रीम पार्टी के कैंडिडेट एम निजामुद्दीन लश्कर को 2.49 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया। हसीना को 2 लाख 49 हजार 965 तो निजामुद्दीन को महज 469 वोट मिले। हसीना पहली बार 1986 में चुनाव जीती थीं।वे 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री थीं। इसके बाद 2009 में फिर प्रधानमंत्री बनीं। तब से अब तक सत्ता पर काबिज हैं।

बांग्लादेश चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार चुनाव में 40% वोट पड़े। यह आंकड़ा बदल सकता है। 2018 के चुनाव में 80% मतदान हुआ था। देश में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) समेत विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था।

बांग्लादेश में विपक्ष ने 6 जनवरी को 48 घंटे की हड़ताल का ऐलान किया था। इसके बाद विपक्ष की गैरमौजूदगी में बैलट पेपर पर अवामी लीग, उसकी सहयोगी पार्टी और निर्दलीय कैंडिडेट्स के नाम ही लिखे गए। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग की जीत को औपचारिकता ही माना गया था।

45 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की

हालांकि, शेख हसीना की जीत कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि कहीं न कहीं इसका अंदाजा सभी को था। पर इन सबके बीच ध्यान जाता है विपक्ष पर। छिटपुट हिंसा और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) तथा उसके सहयोगी दलों के बहिष्कार के बीच हुए चुनाव में देखा जा सकता है कि जातीय पार्टी से आगे निर्दलीय उम्मीदवार रहे…अवामी लीग ने 155 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की है, जबकि जातीय पार्टी ने महज आठ सीटें हासिल की हैं। इसमें कहा गया है कि 45 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।

वास्तव में एक दलीय संसद होगी

पोर्ट के अनुसार, अवामी लीग के पूर्ण बहुमत के बीच निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत देश की राजनीति में संकट पैदा कर सकती है।यह अवामी लीग के सहयोगियों के बीच भी संकट पैदा कर सकता है। राजनीतिक में समझ रखने वालों का कहना है कि उन्हें लगता है कि अवामी लीग हमेशा अपनी रणनीति के कारण आगे रहती है, न कि वैचारिक रुख के लिए। एक मजबूत विपक्ष होना चाहिए था। सिर्फ नाम के लिए नहीं। ऐसा नहीं लगता कि निर्दलीय उम्मीदवार संसद में विपक्ष की भूमिका निभाएंगे।

सूत्रों का कहना है कि कुछ निर्दलीय अवामी लीग में शामिल नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर शामिल होंगे। इसलिए, यह वास्तव में एक दलीय संसद होगी।