“फादर्स डे” पर पढ़िये पिता के नाम ये कविता…

बाबा तुम्हारे कन्धों पर चढ़ कर
न जाने कितने मेले मैनें देखे

न जाने कितनी दुनिया देखी
बाबा तुमने मुझे दिखाई दुनिया
जब मुझे समझ भी नहीं थी
दुनियादारी की

कभी दायें कंधे
कभी बाएँ कंधे
कभी दोनों टाँगे
एक-एक कंधे पर रखकर
मैं लेता रहा आनंद
दुनिया के नजारों का

और जब मैं ज़मीन पर
चलने लायक हुआ तो
तुमने उतार दिया ज़मीन पर
लेकिन मैं चला नहीं ज़मीन पर
आसमान पर उड़ने लगा

तुमसे दूर…दूर…इतना दूर हो गया
कि तुम्हारे गहरे अनुभवों को भी
दरकिनार कर दिया
जब-जब घर में
टी. वी.,फ्रिज,कंप्यूटर,माईक्रोवेब
जैसे उपकरणों ने दस्तक दी
मैंने उनसे दूर रहने की
हिदायत देते हुए कहा
तुम नहीं समझोगे बाबा
नए ज़माने की चीज़ों को

मुझे कंधे पर बैठा कर
दुनिया दिखाने वाले बाबा
मैंने खींच दिए परदे
तुम्हारे कमरे के आगे
ताकि ड्राइंग रूम में बैठे
मेरे दोस्तों को
तुम्हारी भनक भी न पड़े

तुम्हे हर चीज़ तुम्हारे कमरे में ही
पहुंचाने की ज़िम्मेदारी ले ली
ताकि तुम बाहर के
कमरों में आकर
हमें दखल न दो

मै तुम्हारे सिरहाने बैठ कर
दवाएं देता रहा
और तुम्हारे प्राण उड़ने की
करता रहा प्रतीक्षा

जिंदगी को अपने कंधो पर
दिखाने वाले बाबा
मैं तुम्हे नहीं बैठा पाया
अपने कन्धों पर
जीते जी कुछ नहीं कर पाया
तुम्हारे लिए
बस अंत समय में
”कन्धा” ही दे पाया तुम्हे

 

साभार फेसबुक