ओखिल बाबू…. जिन्होंने चिट्ठी लिखी तो ट्रेनों में पहली बार मिली शौचालय की सुविधा

भारत में पहली ट्रेन चलने के 55 सालों तक ट्रेनों में शौचालय की सुविधा नहीं थी। जी हां, हैरान नहीं होइये। देश में पहली ट्रेन चलने के 55 साल बाद ट्रेनों में शौचालय की सुविधा मिली। महत्वपूर्ण यह कि ब्रिटिश शासन के दौरान ट्रेनों में शौचालय के लिए एक भारतीय ने भागलपुर रेलखंड से आवाज उठाई थी। अंग्रेजों ने ट्रेनों में शौचालय की व्यवस्था एक यात्री के पीड़ा भरे पत्र मिलने के बाद की थी। यह पत्र भागलपुर रेलखंड के यात्री ट्रेन से यात्रा कर रहे ओखिल चन्द्र सेन ने 1909 में लिखी थी, जो भारतीय रेल में इतिहास बन गया।

ओखिल बाबू की चिट्ठी आज भी है मौजूद

ओखिल बाबू का लिखा यह पत्र आज भी दिल्ली के रेलवे म्यूजियम में चस्पा है। ओखिल बाबू के बारे में मिली सूचना के आधार पर वह एक बैंक अधिकारी थे। उन्होंने यह पत्र उस वक्त के साहिबगंज रेलवे डिविजन आफिस को लिखी थी। उनकी चिट्ठी के बाद ही ब्रिटिश शासन के दौरान ट्रेनों में शौचायल का प्रस्ताव आया। इसकी चर्चा आईआईएम अहमदाबाद में शोधार्थी जी रघुराम ने प्रकाशित शोध पत्र में भी की है।

1853 में चली थी पहली ट्रेन

भारत में सबसे पहली ट्रेन 1853 में चलायी गई थी। इसके लगभग एक दशक बाद ही हावड़ा जमालपुर होते हुए लूप लाइन का निर्माण हुआ था और उस वक्त कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं चलती थी।

ओखिल बाबू ने चिट्ठी में क्या लिखा था ?

‘प्रिय श्रीमान,
मैं पैसेंजर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन (रामपुर हाट के पास) आया और मेरा पेट कटहल की तरह फुल रहा था। मैं शौच के लिए वहां एकांत में गया। मैं शौच से निवृत्त हो ही रहा था कि ट्रेन चल पड़ी। मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ में धोती पकड़कर दौड़ा, लेकिन रेल पटरी पर गिर पड़ा। मेरी धोती खुल गई और मुझे वहां मौजूद सभी महिला-पुरुषों के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। मेरी ट्रेन छूट गई और मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया। यह बहुत बुरा है कि जब कोई व्यक्ति टॉयलेट के लिए जाता है तो क्या गार्ड ट्रेन को पांच मिनट भी नहीं रोक सकता।

मैं आपके अधिकारियों से गुजारिश करता हूं कि जनता की भलाई के लिए उस गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए। अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं इसे अखबार में छपवाऊंगा।’

आपका विश्वासी सेवक
ओखिल चंद्र सेन

और इसके बाद से ट्रेनों में शौचालय की सुविधा दी जाने लगी।