चमकी बुखार : बिहार में यूं ही बदनाम हो गई लीची, जबकि इस वजह से जा रही थी बच्चों की जान

बिहार के मुजफ्फरपुर में पिछले साल चमकी बुखार से बड़ी संख्या में मासूम बच्चों की जानें चली गयीं। सरकार कहती रही कि ये लीची के कारण हो रहा है। कहें तो शुरूआती जांच में भी यही साफ हुआ। लेकिन इसके बाद यह बात सामने आयी कि इनमें से आधे से अधिक बच्चों ने लीची खाई ही नहीं थी। जिसमें ज्यादातर बच्चे दो साल से कम उम्र के बच्चे थे और वे लीची नहीं खा सकते थे। ऐसे में मौत के पीछे कारणों की वहज लीची है, इसे खारिज कर दिया है।इसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रीसर्च ने आगे की जांच के आदेश दिए हैं।

सरकार बोली थी लीची है वजह

बता दें कि जून 2019 में बिहार में इंसेफेलाइटिस से 125 से ज्यादा मौतें हो गई थीं और पूरे राज्य में 550 ज्यादा मामले सामने आए थे। राज्य सरकार हीट वेव और लीची में मौजूद जहर को दोष दे रहे थे जबकि पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स और शोधकर्ता कुपोषण और खराब स्वास्थ्य व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया था।

इन्फेक्शन भी नहीं

मौत का आंकड़ा बढ़ने के बाद केंद्र सरकार ने ICMR, NCDC, NIN और अटलांट के CDCP की टीमों को मुजफ्फरपुर भेजकर कारण पता लगाने का काम सौंपा था। शुरुआती रिपोर्ट्स में यह भी पता चला है कि इसके पीछे किसी वायरस, बैक्टीरिया, फंगस या जीवाणु से संक्रमण कारण नहीं था। एक्सपर्ट्स का कहना है कि लीची में एक खास तत्व होता है जो खून में शुगर के लेवल को कम कर सकता है अगर खाली पेट बहुत सारी लीची खाई गई हो, लेकिन इसके साथ दूसरे फैक्टर्स होना भी जरूरी होता है।

सरकार की लापवाही आयी सामने

आधिकारिक डेटा के मुताबिक बिहार सरकार जिले में बच्चों के पोषण और हेल्थकेयर को लेकर लापरवाह रही है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के मुताबिक मुजफ्फरपुर में करीब 48% बच्चों का 5 साल की उम्र के बाद बढ़ना रुक जाता है। 17.5% ज्यादा पतले होते हैं जबकि 42% का वजन कम होता है। ये सब कुपोषण के चिह्न होते हैं।