आखिर क्यों उठ रहे गोगोई के राज्यसभा के लिए नामित होने पर सवाल

Former CJI Ranjan Gogoi

राज्यसभा की खाली सीटों पर चुनाव के घमासान के बीच भारत के संविधान के अनुछेद 80 के खंड (3) के साथ पठित खंड 1 के उपखंड (क) द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति एक नामित सदस्य की सेवानिविर्ती के कारण हुई रिक्तियों को भरने के लिए पूर्व CJI रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया।

रंजन गोगोई जिन्हें अपने कार्यकाल में दिए गए कई बड़े फैसलों को लिए जाना जाता है। रोचक बात है कि सेवानिवृत्ति से पहले उन्होंने अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद – राम मंदिर विवाद पर फैसला सुनाया था। पूर्व सीजेआई ने तीन अक्टूबर, 2018 को देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। किन्तु गोगोई के नामित होने पर सवाल उठने भी शुरू हो चुके हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दो मीडिया रिपोर्ट्स का स्क्रीनशॉट शेयर कर कहा कि तस्वीर सब कुछ कह रही है। वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने भी गोगोई के नामित होने पर सवाल उठाए तो यसवंत सिन्हा ने ट्विट कर कहा नसीहत ही दे डाली।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के राज्यसभा में नामित होने वाली एक खबर का स्क्रीनशॉट शेयर किया। इसके साथ ही उन्होंने एक दूसरे आर्टिकल का स्क्रीनशॉट भी पोस्ट किया.

जिसमें लिखा गया था-

‘भारत की न्यायपालिका से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है’।

साथही पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के राज्यसभा के लिए मनोनीत होने पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है, “या तो राज्यपाल, चेयरमैन और राज्यसभा वरना तबादले झेलो या इस्तीफे देकर घर जाओ।” पार्टी प्रवक्ता जयवीर शेरगिल बोले, “बीजेपी ने स्वतंत्र न्यायपालिका का अपहरण कर उसकी हत्या की। पहले कानून अंधा होता था…बीजेपी ने उसे राजनीतिक फंदा भी पहना दिया।”

 

एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्विटर पर सवाल खड़ा किया और आरोप लगाया कि ये किस बात के बदले में दिया गया है. उन्होंने ये भी कहा कि ऐसे में लोग कैसे जजों की स्वतंत्रता पर भरोसा करेंगे।

ओवैसी ने अपने ट्विट में लिखा,
“क्या ये किसी चीज के बदले में मिला है? लोग कैसे जजों की स्वतंत्रता पर भरोसा करेंगे? कई सवाल हैं।”
असदुद्दीन ओवैसी

यसवंत सिन्हा ने ट्विट पर नसीहत ही देते हुए लिखा

मुझे उम्मीद है कि पूर्व-सीजी रंजन गोगोई को राज्यसभा सीट की पेशकश के लिए ‘नहीं’ कहने का अच्छा अर्थ होगा। अन्यथा वह न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा।

आपको बता दे, March 27,2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वैध “मजबूत दृष्टिकोण” है कि न्यायाधिकरण में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति “न्यायपालिका की स्वतंत्रता” पर एक “धब्बा” है।

उस समय रहे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ, जो अर्ध-न्यायिक न्यायाधिकरणों को संचालित करने वाले कानूनों से संबंधित 18 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, ने कहा कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आमतौर पर इन पैनलों के लिए अनिच्छुक होते हैं, क्योंकि इसमें नियुक्तियों में देरी हुई थी ।

पीठ ने कहा, “एक दृष्टिकोण है कि सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की न्यायिक स्वतंत्रता पर एक धब्बा है।” पीठ ने कहा, “यह एक वैध और मजबूत बिंदु है”, आप इसे कैसे संभालते हैं।

न्यायपालिका के न्यायाधिकरण के मुद्दे से निपटते हुए, जिसमें जस्टिस एनवी रमना, डी वाई चंद्रचूड़, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना शामिल थे, ने कहा कि यह उच्च न्यायालयों के बोझ को कम करने के लिए किया गया है और वहाँ रिक्तियों की स्थिति बहुत विकट थी।