कोई भी व्यक्ति जो अपने उपभोग के लिए सामान या सेवाएं खरीदता है, वह उपभोक्ता है। यानी हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है। लेकिन, यह भी सच है कि उपभोक्ता आज जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, अधिक दाम, कम नाप-तौल इत्यादि संकटों से घिरा है। उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 लागू किया गया था। ताकि, उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा सके। धोखाधड़ी, कालाबाजारी, घटतौली आदि का शिकार होने पर उपभोक्ता इसकी शिकायत कर सकें। वर्ष 1986 से लेकर अब तक उपभोक्ता बाजारों में भारी बदलाव आया है। उपभोक्ता अब विभिन्न प्रकार के अनुचित नियम एवं शर्तों के कारण भ्रम की स्थिति में हैं। वर्तमान में बदलते उपभोक्ता बाजारों में मौजूदा अधिनियम की प्रासंगिकता कम हो रही है। अतः उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक नए एवं संशोधित अधिनियम की जरूरत महसूस करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन दशक पुराने कानून को बदल दिया है। इसकी जगह उपभोक्ता संरक्षण कानून- 2019 ने ले ली है। नये कानून में उपभोक्ताओं के हित में कई कदम उठाए गए हैं। पुराने नियमों की खामियां दूर की गई हैं।
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचने वाली कंपनियों के लिए सख्त दिशा-निर्देश
’उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986’ में न्याय के लिए एकल बिंदु पहुंच दी गई थी, जो काफी समय खपाने वाला होता है। संशोधनों के बाद ये नया अधिनियम लाया गया है ताकि खरीदारों को न केवल पारंपरिक विक्रेताओं से बल्कि नए ई-कॉमर्स खुदरा विक्रेताओं-मंचों से भी सुरक्षा प्रदान की जा सके। ’उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम- 2019’ देश में उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होगा। नए कानून की कुछ खूबियों में सेंट्रल रेगुलेटर का गठन, भ्रामक विज्ञापनों पर भारी पेनाल्टी और ई-कॉमर्स फर्मों और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचने वाली कंपनियों के लिए सख्ता दिशा-निर्देश शामिल किये गए हैं। नए उपभोक्ता संरक्षण कानून को उपभोक्ताओं की नजर से देखें तो यह उनके अधिकारों में जबरदस्त वृद्धि करता है। नये कानून के तहत उपभोक्ताओं के प्रति कंपनियों की जिम्मेदारियां और बढ़ गयी हैं। शायद दुनिया में भारत सरकार की पहल पहली होगी कि भ्रामक विज्ञापन करनेवाले सेलिब्रिटीज पर भी अब कानून का शिकंजा कसा जा सकेगा। आधुनिक विपणन की धारणा के अंतर्गत उपभोक्ता को सभी व्यापार संबंधी गतिविधियों का केंद्र बिंदु समझा जाता है, जिसका ध्येय उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्ट करना है। भारतीय बाजारों में वस्तुओं और सेवाओं की भरमार होने के बाद यह देखा गया है कि उपभोक्ता कई बार उच्च गुणवत्ता के दावों, अनुचित व्यापार पद्धतियों, फैन्सी पैकेजिंग के शिकार हो जाते हैं और कई बार युक्तिसंगत निर्णय नहीं कर पाते हैं। उपभोक्ता संरक्षण के दायरे में उपभोक्ताओं के कल्याण संबंधी सभी पहलू शामिल हैं और वर्तमान युग में इन पहलुओं को अंतर्राष्ट्रीय रूप में भी स्वीकार किया गया है। आज उपभोक्ता यह अपेक्षा करता है कि कोई उत्पाद या सेवा युक्तिसंगत आकांक्षाओं को पूरा करे, इस्तेमाल में सुरक्षित हो और उत्पाद संबंधी विशिष्टताओं का पूर्ण प्रकटीकरण किया गया हो। इन आकांक्षाओं को उपभोक्ता अधिकार कहा गया है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने उपभोक्ता के अधिकारों को राष्ट्रीय हित के समान बताया था। उन्होंने मार्च 1962 में अमरीकी उपभोक्ताओं को बुनियादी अधिकार प्रदान किए थे।
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना
देश में 20 जुलाई 2020 से लागू ’उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम- 2019’ का मूल उद्देश्य, उपभोक्ताओं की समस्याओं को समय पर हल करने के लिए प्रभावी प्रशासन और जरूरी प्राधिकरण की स्थापना करना और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। उपभोक्ता किसी उत्पाद से खुद को किसी भी प्रकार का नुकसान होने या उत्पाद में खराबी निकलने पर विनिर्माता या विक्रेता के खिलाफ शिकायत करा सकता है। उत्पाद के खराब निकलने या विनिर्माण विनिर्देशों में किसी भी प्रकार का अंतर पाये जाने पर भी विनिर्माता ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार होगा। इस नियम की खास बात यह है कि इसके तहत ई-कॉमर्स कंपनियां भी आती हैं। उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत भ्रामक विज्ञापन करने वालों पर भी नकेल कसी गयी है। उत्पाद से संबंधित कोई भी गलत जानकारी उस विज्ञापन को करने वाले सेलिब्रिटी को मुश्किल में डाल सकती है। इस नियम के तहत विनिर्माता को भ्रामक प्रचार के लिए जुर्माना अथवा जेल या फिर दोनों हो सकती है। भ्रामक विज्ञापन का प्रचार करनेवाले पर जुर्माना और प्रतिबंध लग सकता है। बार-बार ऐसा करने पर भारी जुर्माना और लम्बा प्रतिबंध भी झेलना पड़ सकता है। कानून में एक और बड़ा बदलाव यह हुआ है कि अब कहीं से भी उपभोक्ता शिकायत दर्ज कर सकता है। उपभोक्ताओं के नजरिए से यह बड़ी राहत है। पहले उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज करा सकता था, जहां विक्रेता अपनी सेवाएं देता है। ई-कॉमर्स से बढ़ती खरीद को देखते हुए यह महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा कानून में उपभोक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई में शिरकत करने की इजाजत दी गई है। इससे उपभोक्ता का पैसा और समय दोनों बचेंगे। नए कानून में कंपनी की जवाबदेही तय की गई है।
मैन्यूफैक्चरिंग में खामी या खराब सेवाओं से अगर उपभोक्ता को नुकसान होता है तो उसे बनाने वाली कंपनी को हर्जाना देना होगा। मसलन, मैन्यूफैक्चरिंग में खराबी के कारण उपभोक्ता को चोट पहुंचती है, तो उस हादसे के लिए कंपनी को हर्जाना देना पड़ेगा। पहले कंज्यूमर को केवल वस्तु की लागत मिलती थी। इस प्रावधान का सबसे ज्यादा असर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर होगा। कारण है कि इसके दायरे में सेवा प्रदाता भी आ जाएंगे। प्रोडक्ट की जवाबदेही अब मैन्यूफैक्चरर के साथ सर्विस प्रोवाइडर और विक्रेताओं पर भी होगी। अर्थात ई-कॉमर्स साइट खुद को एग्रीगेटर बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों पर डायरेक्ट सेलिंग पर लागू सभी कानून प्रभावी होंगे। इन्हें विक्रेताओं के ब्योरे का खुलासा करना होगा। ई-कॉमर्स फर्मों की जिम्मेदारी होगी कि उनके प्लेटफॉर्म पर किसी तरह के नकली उत्पादों की बिक्री न हो। अगर ऐसा होता है तो कंपनी पर पेनाल्टी लगेगी। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर नकली उत्पादों की बिक्री के मामले बढ़े हैं। कानून में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) नामक केंद्रीय रेगुलेटर का प्रावधान है, जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने के साथ-साथ उनको बढ़ावा देगा और लागू करेगा। यह प्राधिकरण, अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को भी देखेगा। सीसीपीए के पास उल्लंघनकर्ताओं पर जुर्माना लगाने और बिके हुए माल को वापस लेने या सेवाओं को वापस लेने के आदेश पारित करना, अनुचित व्यापार प्रथाओं को बंद करने और उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की गई कीमत को वापस दिलाने का अधिकार भी होगा।
प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं से संरक्षित रहने का अधिकार
नए कानून के तहत उपभोक्ताओं के लिए शिकायत करने की जटिलता खत्म कर आसान बनाया गया है। साथ ही कई नए अधिकार भी शामिल किये गए हैं। मसलन, वस्तुओं या सेवाओं की मात्रा, गुणवत्ता, शुद्धता, क्षमता, कीमत और मानक के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार। खतरनाक वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षित रहने का अधिकार। अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं से संरक्षित रहने का अधिकार। प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं या सेवाओं की उपलब्धता। भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबंध और जुर्माना। राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों का गठन। राष्ट्रीय विवाद निवारण आयोग, 10 करोड़ रुपये से अधिक की शिकायतों को सुनेगा, जबकि राज्य विवाद निवारण आयोग, एक करोड़ से 10 करोड़ रुपये तक की शिकायतों की सुनवाई करेगा। जिला विवाद निवारण आयोग, एक करोड़ रुपये तक की शिकायतों को सुनेगा। नए कानून के तहत कंज्यूमर मीडिएशन सेल गठन का प्रावधान है। जहां दोनों पक्ष आपसी सहमति से जा सकेंगे। जनहित याचिका (पीआईएल) अब कंज्यूमर फोरम में फाइल की जा सकेगी। पहले के कानून में ऐसा नहीं था। 20 जुलाई 2020 से लागू उपभोक्ता संरक्षण के नये कानून के लागू होते ही ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए कई नए नियम लागू हो गए हैं, जो पुराने एक्ट में नहीं थे। खास तौर से पिछले कुछ सालों में आए नए बिजनेस मॉडल्स को भी इसमें शामिल किया गया है। इस अधिनियम के तहत उपभोक्ता को किसी प्लेटफॉर्म पर खरीददारी करने से पहले उपयुक्त निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई को अपने मूल देश समेत रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी और गांरटी, डिलीवरी एवं शिपमेंट, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीके, भुगतान के तरीकों की
सुरक्षा, शुल्क वापसी संबंधित विकल्प आदि के बारे में सूचना देना अनिवार्य होगा। इस अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को 48 घंटों के भीतर उपभोक्ता को शिकायत प्राप्ति की सूचना देनी होगी और शिकायत प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर उसका निपटारा करना होगा। इसके अलावा, नया अधिनियम उत्पाद दायित्व की अवधारणा को प्रस्तुत करता है और मुआवजे के किसी भी दावे के लिए उत्पाद निर्माता, उत्पाद सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता को इसके दायरे में लाता है। नया कानून ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी को रोकने में कारगर साबित तो होगा ही, धोखाधड़ी करने वालों की भी खैर नहीं होगी। उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के मकसद से केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना तथा खराब सामान एवं सेवाओं की खामियों के संदर्भ में शिकायतों के निवारण की व्यवस्था ने उपभोक्ता अधिकारों को सशक्त किया है।
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