पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन सूचना 2020 पर हुई चर्चा, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. जयराम रमेश बोले- पर्यावरण संरक्षण राष्ट्र के हितों के लिए आवश्यक

अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की रिसर्च विभाग ने पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन सूचना 2020 पर चर्चा आयोजित किया. इस चर्चा में पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. जयराम रमेश ने संबोधित किया और रिसर्च विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो0 राजीव गौड़ा ने संचालित किया.

भारत पर्यावरण संरक्षण को कमजोर कर रही है-रमेश

इस परिचर्चा में डॉ. जयराम रमेश ने कहा कि वर्त्तमान इआइए पर्यावरण की कीमत पर बड़े व्यापारिक सरोकारों को प्राथमिकता देती है। दुनिया भर में सरकारें पर्यावरण संरक्षण कानून को मजबूत करने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन भारत इसके विपरीत चल रहा है। प्रस्तावित इआइए 2020 के माध्यम से सरकार पर्यावरण सुरक्षा को भेदना चाह रही है। अगर यह मसौदा प्रभाव में आता है तो बिना सार्वजनिक परामर्श के कई विषय और पर्यावरण के दृष्टि से खराब होने वाले उद्योगों को स्थापित करने की अनुमति मिल जायेगी। प्रस्तावित इआइए 2020 घटनोत्कर स्वीकृति प्रदान करता है जिसका अर्थ है कोई भी प्रदुषणकारी इकाइयां स्थापित की जा सकती है. मात्र एक छोटे शुल्क के भुगतान के पश्चात वह अपने ऑपरेशन को जारी रख सकता है जो एक विनाशकारी कदम होगा। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित इआइए भारत में पर्यावरण संरक्षण ढाँचे को कमजोर करने के लिए 2014 के पश्चात मोदी सरकार का अगला कदम है, जिसने पर्यावरण की कीमत पर व्यवसाय करने में आसानी को लगातार प्राथमिकता दी है। पर्यावरण संरक्षण राष्ट्र के दृघकालिक हितों के लिए आवश्यक है। यह मोदी सरकार के पाखंड का एक उदाहरण है।

पर्यावरण में गिरावट का कारक बनना एक अपराध

इस दौरान बारह वर्ष के एक युवक वैभव ने पोस्ट फैक्टो क्लीयरेन्स पर अपनी चिन्ताओं को जताया तथा विधायकों तथा कार्यकर्त्ताओं से इसपर तत्काल हस्तक्षेप की माँग की। यह मसौदा एक जनविरोधी कदम है क्योंकि कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद क्षेत्रीय भाषाओं में इसका अनुवाद नहीं कराया गया। यह मसौदा मात्र हिन्दी एवं अंग्रेजी में ही उपलब्ध है। प्रभावित समुदायों के विचारों को भी इसमें जोड़ने का प्रयास नहीं हुआ। जल, जीवन एवं वायु की गुणवत्ता को अगर एकबार नुकशान पहुँचे तो उसकी भरपाई संभव नहीं है। पर्यावरण में गिरावट का कारक बनना एक अपराध है। इआइए 2020 का संविदा इसकी रक्षा करता नहीं दिख रहा है। पारिस्थिकी तंत्र, वन्यजीवन, मानवशास्त्र अकसर अपरिवर्त्तनीय होता है. उन्होंने कहा कि अगर यह संविदा अस्तिव में आता है तो निसंदेह सरकार का एक अपरिपक्व निर्णय होगा।

पर्यावरण की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य

आर्थिक प्रगति एवं पारिस्थिकी संतुलन हमेशा से एक चुनौती रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी इसके प्रति सदैव सजग रहती थी तथा समय-समय पर अपने सहयोगियों और मुख्यमंत्रियों से भी संवाद करती थी। लेकिन वर्त्तमान सरकार इस मामले में कतई गंभीर नजर नहीं आती। क्या वे नहीं समझते कि प्रकृति से छेड़छाड़ पूरे मानवता को संकट में ला सकता है। उन्होंने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (जी) यह बताता है कि प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य होगा कि वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे एवं जीवों के प्रति दया का भाव रखे लेकिन इआइए 2020 का संविदा नागरिकों के इस अधिकार का हनन करता है। भारत सरकार ने इसके विरूद्ध आपत्ति दर्ज करने की अंतिम तिथि 11 अगस्त रखी है। भारत का कोई भी नागरिक पर्यावरण सचिव को सीधे अपना विचार लिख सकता है अथवा मपं2020.उवममिब/हवअण्पद पर मेल कर सकता है। जयराम रमेश ने यह भी बताया कि जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय की शरण में भी इस इआइए 2020 के खिलाफ भी जाया जा सकता है क्योंकि यह मूल कानून पर्यावरण सुरक्षा कानून अधिनियम 1986 के विरूद्ध है।

इआइए 2020 के मसौदे को तत्काल रद्द किया जाए

बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी रिसर्च विभाग के चेयरमैन आनन्द माधव एवं क्षेत्रीय समन्वयक मधुबाला ने भी डॉ. गौड़ा के साथ जयराम रमेश के साथ संवाद स्थापित किया। इस बैठक में 400 से अधिक लोगों ने देश-विदेश से भाग लिया तथा सबों ने एक स्वर में इस बात को स्वीकार किया कि या तो इआइए 2020 के मसौदे को तत्काल रद्द किया जाय अन्यथा यह भारत में पारिस्थिकी संतुलन के लिए एक बड़ा खतरा बनेगा। इस परिचर्चा में कर्नाटक की विधायक सौम्या रेड्डी, आलोक जगधारी, वरूण संतोष, सौम्या, सौरभ सिन्हा, दीपाली शिकंड, आकाश सत्यावली, लेनी जाधव, पंकज यादव, नीरज कुमार, सोनाली, बी0 रामाप्रसाद अल्वा आदि ने भाग लिया।