“गांधी की समझ एक विकास परिस्थितिविज्ञानशास्त्री की नजर से” पर वक्ताओं ने रखी राय, गांधी के पर्यावरणीय और आर्थिक सिद्धांतों को एक वाक्य में परिभाषित नहीं किया जा सकता

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर आइ०क्यू०ए०सी०, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस, पटना ने एक वार्ता का आयोजन किया. जिसमें “गांधी की समझ एक विकास परिस्थितिविज्ञानशास्त्री की नजर से” पर वक्ताओं ने अपनी राय रखी. स्कूल ऑफ इकोलॉजी और एनवायरमेंटल स्टडीज, नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर, बिहार, के डॉक्टर सोमनाथ बंधोपाध्याय ने बताया कि महात्मा गांधी कोई अर्थशास्त्री नहीं थे और ना ही उन्होंने कोई आर्थिक मॉडल ही पेश किया. लेकिन अपने समय में उन्होंने गरीबी और उपेक्षा की जिस तस्वीर को देखा, वह उनके लिए असामान्य थी। अहिंसा, स्वराज, चरखा और सत्याग्रह की बात करने वाले महात्मा गांधी ने आर्थिक असमानता और समाज विकास की जो तस्वीर अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में लिखी है, वह आज के दौर में ज्यादा प्रसांगिक और उपयोगी है।

सतत विकास का अर्थ भावी पीढ़ियों का विकास करना

उन्होंने गांधीजी को 21वीं सदी का पर्यावरणविद बताया। 21वीं सदी का ध्यान सतत विकास पर है। सतत विकास का अर्थ भावी पीढ़ियों का विकास करना है। यद्यपि गांधी सतत विकास की अवधारणा से अपरिचित थे तथापि उनके रचनात्मक कार्यक्रम प्रकृति और प्राकृतिक वातावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ऐसे विकास का प्रथम खाका खींचते हैं। गांधी के पर्यावरणीय और आर्थिक सिद्धांतों को एक वाक्य में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। यह उनकी अपनी सामान्य जीवन शैली से शुरू होता है और उन सिद्धांतों से होकर गुजरता है जो उन्होंने अपने जीवन में अपनाएं।

जीवन मूल्य और दर्शन सार पर प्रकाश

इस वार्ता के संरक्षक और प्रधानाचार्य प्रोफेसर डॉ० तपन कुमार शांडिल्य ने अपने उद्घाटन भाषण में अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्होंने गांधी को वर्तमान समय से जोड़ा। उन्होंने गांधी और परिस्थितिकी के समग्र दृष्टिकोण को बताते हुए जीवन मूल्य और दर्शन सार पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गांधीजी ने इच्छाओं की सीमितता को केंद्र में रखकर परिस्थितिकीय अथवा मूलभूत आवश्यकता आधारित मॉडल की परिकल्पना की जिससे समाज और प्रकृति के विभिन्न तत्वों के बीच एक प्रकार का तालमेल बनाने पर ध्यान दिया जाएगा।

आज के इस कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर डॉ० संतोष कुमार, समन्वयक, आइ०क्यू०ए०सी०, भौतिक शास्त्र विभाग ने किया। उन्होंने आज के समय में गांधी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पर्यावरण के संबंध में उनके द्वारा की गई कुछ सीधी टिप्पणीयां दर्शाती हैं कि कैसे गांधी ने उन अधिकांश पर्यावरणीय समस्याओं का पूर्वानुमान लगा लिया था जिनका आज हम सामना कर रहे हैं।
इस सभा की समाप्ति प्रोफेसर रचना सुचिनमई, राजनीति शास्त्र विभाग के धन्यवाद ज्ञापन से हुई। उन्होंने कहा कि मुख्य वक्ता ने गांधी के गरीबी उन्मूलन, स्वाबलंबन संबंधी विचारों को समझाते हुए आर्थिक और विकास में अंतर बताया और सतत विकास के लिए किस प्रकार दुर्लभ साधनों का उपयोग किया जाए इसकी बात की।

खुले सत्र में विभिन्न व्यक्तियों ने प्रश्न पूछे और इस व्याख्यान को मनोहर तथा ज्ञानवर्धक बना दिया। इस व्याख्यान में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर उमेश प्रसाद, प्रोफेसर के० एन० यादव, प्रोफेसर संजय कुमार पांडे, डॉ० बैकुंठ राय, डॉ० कृष्ण भूषण पद्मदेव, डॉ० रश्मि अखौरी, प्रोफेसर विवेक कुमार, प्रोफेसर सलोनी, प्रोफेसर कीर्ति, प्रोफेसर सुनीता लाल, प्रोफेसर जय मंगल देव, प्रोफेसर इम्तियाज हसन, प्रोफेसर पद्मीनी प्रसाद, प्रोफेसर राघवेंद्र किशोर, प्रोफेसर अरविंद कुमार नाग और प्रोफेसर अदिति इत्यादि भी उपस्थित थे। विभिन्न विभागों के छात्र एवं छात्राओं के सहभागिता से इस व्याख्यान का सफलतापूर्वक समापन हुआ।