कोरोना वायरस के हवा से भी फैलने की बात को WHO ने भी स्वीकार किया

कोरोना वायरस हवा से भी फैल सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को नावेल  कोरोनो वायरस के हवाई प्रसार के “सबूत उभरने” को स्वीकार किया, वैज्ञानिकों के एक समूह ने वैश्विक निकाय से अपने मार्गदर्शन को अपडेट करने के लिए आग्रह किया कि श्वसन रोग लोगों के बीच कैसे गुजरता है।

डब्ल्यूएचओ में COVID​​-19 महामारी पर तकनीकी प्रमुख मारिया वान केरखोव ने कहा, “हम COVID​​-19 के प्रसारण के तरीकों में से एक के रूप में एयरबोर्न ट्रांसमिशन और एयरोसोल ट्रांसमिशन की संभावना के बारे में बात कर रहे हैं।”

डब्ल्यूएचओ ने पहले कहा है कि वायरस जो COVID​​-19 श्वसन रोग का कारण बनता है वह मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुंह से निकाले गए छोटे बूंदों के माध्यम से फैलता है जो जल्दी से जमीन पर डूब जाता है।

गौरतलब है कि द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) को पत्र लिखकर इन दावों पर गौर करने और दिशा-निर्देशों में बदलाव करने की गुजारिश की थी।

डब्ल्यूएचओ ने पहले कहा था कि इस वायरस का संक्रमण हवा से नहीं फैलता है। यह सिर्फ थूक के कणों से ही फैलता है। ये कण कफ, छींक और बोलने से शरीर से बाहर निकलते हैं। ये इतने हल्के नहीं होते कि हवा के साथ दूर तकउड़ जाएं। वे बहुत जल्द ही जमीन पर गिर जाते हैं।

घर में भी एन-95 मास्क पहनना जरूरी

रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने इस संबंध में डब्ल्यूएचओ को खुला पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि छींकने, खांसने या जोर से बोलने से संक्रमित व्यक्ति के मुंह से निकले बहुत छोटे ड्रॉप्लेट्स हवा में तैरकर स्वस्थ्य व्यक्ति तक पहुंच सकते हैं। इससे दूसरे लोग संक्रमित हो सकते हैं, ऐसे में घरों में रहते हुए भी एन-95 मास्क पहनने की जरूरत है।

डब्ल्यूएचओ ने अभी नहीं माना यह दावा

डब्ल्यूएचओ की टेक्निकल टीम के हेड डॉ. बेनेडेटा अलेग्रांजी ने इस दावे पर कहा, ‘‘पिछले कुछ महीनों में हम कई बार यह कह चुके हैं कि हवा से संक्रमण फैलना संभव है, लेकिन इसके ठोस सबूत अब तक नहीं मिले हैं।’’डब्ल्यूएचओ ने 29 जून को अपनी गाइडलाइन अपडेट की थी। इसमें कहा गया था कि हवा से संक्रमण मेडिकल प्रोसीजर से ही संभव है, जो एयरोसॉल या 5 माइक्रॉन से छोट ड्रॉपलेट्स पैदा करती है। एक माइक्रॉन एक सेंटीमीटर का 10 हजारवां भाग होता है।

एयरोसॉल से कोरोना नहीं मिला

रिसर्च से जुड़े डॉ. मैर का कहना है कि वैज्ञानिक लैब में एयरोसॉल से कोरोनावायरस को उत्पन्न नहीं कर पाए हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इससे संक्रमण नहीं फैल सकता है। इस पर जो प्रयोग किए गए उनमें से ज्यादातर सैम्पल हॉस्पिटल के अच्छे वातावरण से आए, जिससे संक्रमण का स्तर कम हो जाता है।