अमेरिका की गड़बड़ाई अर्थव्यवस्था, दुनिया में छाया मंदी का डर।

अमेरिका में पत्ता भी हिल जाए तो दुनिया को तूफान जैसा महसूस होता है। भले ही यह आपको एक कहावत की तरह लगे लेकिन कुछ हद तक यही सच है। इस बार अमेरिका की इकोनॉमी में सिर्फ पत्ता ही नहीं हिल रहा बल्कि बवंडर की भी आहट सुनने को मिल रही है।

बिगड़ते जा रहे हालात: अमेरिका में महंगाई के आंकड़े 40 साल के शीर्ष पर हैं तो गिरावट के मामले में स्टॉक एक्सचेंज, करीब 14 साल पुरानी कहानी दोहराते नजर आ रहे हैं। तब हालात बैंकिंग फर्म लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया हो जाने से बिगड़े और अमेरिका के अलावा भारत समेत दुनियाभर के शेयर बाजार रेंगते नजर आए थे। इस बार परिस्थिति थोड़ी उलट और विकट है।

यूक्रेन-रूस जंग बड़ी वजह: इस बार यूक्रेन-रूस की जंग और कोरोना की मार ने अमेरिका समेत ग्लोबल इकोनॉमी की मुसीबत बढ़ाई है। ऐसे में सप्लाई चेन पर असर की वजह से महंगाई की रफ्तार भी तेज होती जा रही है। महंगाई की यह स्पीड जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से इकोनॉमी पस्त होती दिख रही है और शेयर बाजार लुढ़क रहे हैं।

बियर मार्केट में हो गई एंट्री: अमेरिकी स्टॉक मार्केट के सूचकांक-S&P 500 ने अपने जनवरी के उच्चतम स्तर के बाद से 20% से अधिक का नुकसान झेल लिया है। इसी के साथ S&P 500 की बियर मार्केट में एंट्री हो गई है। एक अन्य सूचकांक-नैस्डैक पहले से ही बियर मार्केट में शामिल है। यह इस साल 25 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है।

आपको यहां बता दें कि बियर मार्केट से देश के स्टॉक एक्सचेंज की माली हालत के बारे में पता चलता है। यह किसी भी देश की इकोनॉमी के लिए बुरे संकेत होते हैं। कहने का मतलब ये है कि अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज इस बात के संकेत दे रहे हैं कि स्थिति सामान्य नहीं है।

आ रही 2008 की याद: अमेरिकी शेयर बाजार का जो माहौल है, उसे देखकर निवेशकों को 2008 वाली मंदी की याद आ रही है। थॉर्नबर्ग इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के पोर्टफोलियो मैनेजर क्रिश्चियन हॉफमैन मंदी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि लिक्विडिटी इतनी खराब हो गई है, हमें 2008 के ब्लैक ट्रेडिंग डे याद आ रहे हैं। हॉफमैन के मुताबिक बाजार में लिक्विडिटी लेहमैन संकट की तुलना में बदतर है। यह संकट आगे भी बढ़ सकता है।

भारत भी हुआ था प्रभावित: आपको बता दें कि अमेरिका के बैंकिंग फर्म लेहमैन ब्रदर्स जब दिवालिया हुई तब भारतीय शेयर बाजार रसातल में चले गए थे। साल 2008 के शुरुआती महीनों में जो सेंसेक्स 20 हजार अंक के उच्चतम स्तर पर था वो एक साल के भीतर 8 हजार अंक के स्तर पर आ गिरा। तब सेंसेक्स करीब 12000 अंक या 55 फीसदी से ज्यादा टूट गया था।

अभी क्या हैं हालात: अमेरिका की शेयर बाजार की चाल बिगड़ जाने से भारत में भी हाहाकार मचा हुआ है। भारतीय शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक- सेंसेक्स अपने ऑल टाइम हाई 62,245 अंक से करीब 10 हजार अंक नीचे आ चुका है। 19 अक्टूबर 2021 को सेंसेक्स ने अपने ऑल टाइम हाई लेवल को टच किया था। वर्तमान में सेंसेक्स 53 हजार अंक के नीचे है और 52 सप्ताह के निचले स्तर के करीब पहुंचने वाला है। 18 जून 2021 को सेंसेक्स 51601 अंक के लो लेवल पर आया था।

अभी और बढ़ेगा संकट: तमाम एक्सपर्ट बता रहे हैं कि अमेरिकी सेंट्रल बैंक- यूएस फेड के बुधवार को लिए जाने वाले फैसलों के बाद भारतीय शेयर बाजार में बिकवाली बढ़ सकती है। ऐसा अनुमान है कि महंगाई कंट्रोल के लिए यूएस फेड ब्याज दरों में बदलाव की घोषणा करेगा। इस बार ब्याज दरों में 0.75 फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा कर सकता है। यह 28 साल की सबसे बड़ी बढ़ोतरी होगी।

इससे पहले, नवंबर 1994 में ब्याज दर में इतनी बढ़ोतरी की गई थी। अगर ऐसा होता है तो भारतीय शेयर बाजार से लगातार निकल रहे विदेशी निवेशकों के लिए यूएस मार्केट में एक नया मौका बनेगा और वह बिकवाली बढ़ा सकते हैं। इससे भारतीय शेयर बाजार में और गिरावट आएगी।


बहरहाल, महंगाई से निपटने के लिए भारत समेत दुनियाभर में सेंट्रल बैंक अपने स्तर पर तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। इसी के तहत आरबीआई ने भी एक माह में दो बार रेपो रेट में बढ़ोतरी की है। हालांकि, इसके बावजूद भारतीय शेयर बाजार को कोई ठोस बूस्ट नहीं मिल सका है।