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बिहार में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के साथ ही आगे की राजनीति सजने लगी है। गोपालगंज और मोकामा की इन दो सीटों के परिणामों ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। भले ही वहां राजद व भाजपा ने अपनी सीटें बरकरार रखीं, लेकिन वोटों के अंतर ने कई संभावनाओं को जन्म दे दिया है। आगे फिलहाल मुजफ्फरपुर के कुढ़नी में उपचुनाव होना है और उसके बाद लोकसभा चुनाव की ओर सब चलेंगे। लेकिन गठबंधनों का मौजूदा स्वरूप क्या जस का तस रहेगा ये कहा नहीं जा सकता। गोपालगंज में भाजपा और मोकामा में राजद ने अपनी सीटें बरकरार तो रखीं, लेकिन अंतर दोनों का ही घट गया।
राजद भी इसे महसूस कर रहा है, क्योंकि ओवैसी भले न जीतें, परंतु उसका लाभ भाजपा को मिल सकता है और जदयू से अलग होने से हुए नुकसान की भरपाई भाजपा इस कार्ड से करेगी। अभी कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र में पांच दिसंबर को उपचुनाव होने हैं। यह सीट राजद की है और इससे जीते विधायक अनिल सहनी की सदस्यता रद हो गई है। कारण, जब वे राज्यसभा सदस्य थे तो गलत बिल देकर उन्होंने कई लाभ लिए थे। राजद व जदयू दोनों की दावेदारी इस सीट पर है।
गोपालगंज और मोकामा की सीट राजद लड़ा था, इसलिए जदयू की चाहत इस सीट पर लड़ने की है, लेकिन राजद की सीट होने के कारण उसकी दावेदारी तगड़ी है। इस सीट पर विकासशील इंसान पार्टी भी दावेदार है। भाजपा से ठुकराए जाने के बाद वीआइपी के मुकेश सहनी महागठबंधन से तगड़े से सट गए थे। मोकामा व गोपालगंज चुनाव में दमखम के साथ राजद की ओर से डटे थे। अब पहले ही ताल ठोक दी है। वे चाहते हैं कि महागठबंधन उन्हें वह सीट दे दे। इस सीट से मुकेश सहनी के स्वयं लड़ने की भी चर्चा है, लेकिन वह स्वयं न लड़कर किसी और को लड़ाना चाहते हैं।
बहरहाल मुकेश सहनी ने मुकाबला पहले ही त्रिकोणीय बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। इधर चिराग पासवान अब एनडीए के साथ लगभग-लगभग जुड़ ही गए हैं। उनके जुड़ने से उनके चाचा पशुपति कुमार पारस असहज होने लगे हैं। भाजपा भी अब भाव चिराग को ही दे रही है। वह जान रही है कि पासवान वोट चिराग की तरफ ही ज्यादा हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर भी दोनों में बहुत कुछ तय हो चुका है। संभव है कि चिराग को जमुई (चिराग का संसदीय क्षेत्र) के साथ-साथ हाजीपुर सीट (रामविलास की पुरानी व पारस की वर्तमान) भी मिल जाए। ऐसे में पारस का भाजपा के साथ बने रहना मुश्किल होगा। भाजपा अब उन्हें नहीं पूछ रही है। इसलिए भविष्य में वे महागठबंधन के साथ खड़े नजर आएं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। चिराग के सामने चाचा को खड़े करने से महागठबंधन गुरेज भी नहीं करेगा। यानी आगामी राजनीति कई नए समीकरणों को जन्म दे सकती है। देखना होगा आगे-आगे होता है क्या?
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