कालाबाजारी करने वालों की भी खैर नहीं। जी हां! नीतीश सरकार में लगाया इसके लिए नया कोतवाल, जानिए पूरी बात

देश मैं बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच आपदा को अवसर में बदलने वालों की अब खैर नहीं। नीतीश सरकार ने अब नया तंत्र विकसित कर दिया है। जिससे कालाबाजारी करने वालों को राज्य में कोरोना से जुड़ी दवाओं के तय मूल्य से कोई ज्यादा वसूल करना लगभग नामुमकिन है। इस तंत्र के माध्यम से कोरोना काल में रेमडेसिविर जैसी सरकारी नियंत्रण वाले इंजेक्शन और दवाओं पर नजर रखना असं हो जायेगा। राज्य सरकार ने ईस काम के लिए “डिस्ट्रीब्यूशन एंड मॉनिटरिंग सिस्टम” नाम का एक सॉफ्टवेर डेवेलोप किया है जिसकी मदद से यह काम लिया जायेगा। फिलहाल रेमडेसिविर की निगेहबानी की जा रही है, लेकिन जल्द ही इससे सरकार नियंत्रित दूसरी सभी जरूरी दवा और इंजेक्शनों पर भी नजर रखी जा सकेगी। गौरतलब है कि राज्यस्तर पर नेशनल इनफार्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) द्वारा तैयार इस सॉफ्टवेयर ने गुरुवार से काम करना आरंभ कर दिया है।

क्या है इन दवाओं का डिस्ट्रीब्यूशन चैन

सबसे पहले समझते हैं आखिर कैसे इन दवाओं का डिस्ट्रीब्यूशन चैन कैसे काम करता है।  रेमडेसिविरया अन्य सरकारी नियंत्रण वाली दवाएं या इंजेक्शन पहले बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कारपोरेशन (बीएमएसआईसीएल) के पास आती हैं। जिसे सीएंडएफ को भेजा जाता है। सीएंडएफ से इन इंजेक्शनों को 60-40 के अनुपात में क्रमश: सरकारी और निजी क्षेत्र के लिए आवंटित डिस्ट्रीब्यूटरों को दिया जाता है। हर जिले में तैनात एडीसी (असिस्टेंड ड्रग कंट्रोलर) मांग के अनुसार अस्पतालों के लिए आवंटित करने की स्वीकृति देते हैं। फिर अस्पतालों द्वारा तय राशि का भुगतान कर डिस्ट्रीब्यूटरों से उसे प्राप्त किया जाता है। इसके बाद इंजेक्शन की कीमत लेकर उसे मरीज को लगाया जाता है। बतादें कि बीएमएसआईएल से लेकर मरीज तक की पूरी चेन को सॉफ्टवेयर से जोड़ा गया है। सभी एडीसी को नए सॉफ्टवेयर का प्रशिक्षण भी दिया गया है। जबकि अस्पतालों के प्रतिनिधियों को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हालांकि पटना के पूर्व डीएम एवं मौजूदा भवन निर्माण विभाग के सचिव कुमार रवि इस नई व्यवस्था के नोडल अधिकारी बनाए गए हैं।

SMS के ज़रिये मरीजों को मिलेगी जानकारी

गौरतलब है, इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शी बनाने के लिए “डिस्ट्रीब्यूशन एंड मॉनिटरिंग सिस्टम” नमक सॉफ्टवेयर में इंजेक्शन लेने वाले मरीज की पूरी जानकारी अस्पताल को भरना होगा। साथही यह भी उल्लेख करना होगा कि उसे कितनी डोज लगनी है। इसे मरीज या उनके तीमारदार का मोबाइल नंबर भी से जोड़ा जायेगा। अब अस्पताल में जैसे ही मरीज के नाम से इंजेक्शन आवंटित होगा, तत्काल उनके मोबाइल पर मैसेज पहुंच जाएगा। उसमें इंजेक्शन के आवंटन से लेकर उसकी कीमत का भी ज़िक्र होगा, ताकि कोई ज्यादा पैसे ना वसूल सके।

कालाबाजारी पर अंकुश लगाने की है कोशिश

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों ने अस्पतालों में बेड से लेकर रेमडेसिविर इंजेक्शन, जरूरी दवाओं और खासतौर से ऑक्सीजन की किल्लत का सामना किया । जिसमे कोविड के इलाज में इस्तेमाल में आने वाली रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की ख़बरों ने सुर्खियाँ बटोरी है। कालाबाजारी करने वालों ने चंद रुपयों की कीमत वाले इस इंजेक्शन के लिए जरूरतमंद लोगों ने मुंहमांगी कीमत अदा की है। दवा कागजों में किसी मरीज के लिए जारी होने और प्रयोग किसी और के लिए किए जाने के मामले भी सामने आ चुके हैं। इन्हीं समस्याओं के सामने आने के बाद बिहार सरकार ने यह पहल की है। बताया जा रहा है कि अब रेमडेसिविर सहित सरकारी नियंत्रण वाली किसी भी जरूरी दवा की कालाबाजारी नहीं हो सकेगी। लेकिन देखना यह है कि इन सब प्रयासों के बाद कितने सफलता मिलते है।