केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क ने बुधवार को नशा विनष्टीकरण दिवस के तहत 275.8 लाख रुपये का मादक पदार्थ किया गया नष्ट।

आजादी के अमृत महोत्सव के तहत केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क विभाग पटना द्वारा 6 से 12 जून तक प्रतिष्ठित सप्ताह आइकोनिक वीक मनाया जा रहा है। इसी क्रम में बुधवार को नशा विनष्टीकरण दिवस के तहत 275.8 लाख रुपये का जब्त प्रतिबंधित मादक पदार्थ को बैरिया पटना में नष्ट किया गया।

लगभग 1419 किलोग्राम गांजा (मूल्य रु 224.8 लाख), 12 किलोग्राम चरस (मूल्य रु. 36 लाख), कफ सीरप, नशीली सूई एवं गोलियां (मूल्य 15 लाख) को सीमा शुल्क मैनुअल 2019 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए नष्ट किया गया है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से उपरोक्त नशीले पदार्थों के विनष्टीकरण का सीधा प्रसारण देखा। मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व डीजीपी बिहार व शिक्षाविद अभयानन्द थे। इस अवसर पर रणविजय कुमार संयुक्त आयुक्त, मनोज कुमार शर्मा, संयुक्त आयुक्त, डीआरआई के संयुक्त निदेशक बालमुकुन्द एवं उप निदेशक प्रवीन कुमार सहित विभाग के अन्य अधिकारी मौजूद थे।

सीमा शुल्क (निवारण) पटना के प्रधान आयुक्त पीके कटियार ने बताया कि पटना सीमा शुल्क ने पहले भी 40.53 करोड़ रुपये तथा 25.30 करोड़ रुपये मूल्य के नशीले पदार्थों का क्रमशः दिसम्बर 2021 और मार्च 2022 में विनष्टीकरण किया था। उन्होंने बताया कि डीआरआई द्वारा प्रकाशित स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट (2019-2020) ने इस बात को उजागर किया है कि नए रुझानों के अनुसार गांजा उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से चलकर तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से गुजरते हुए उपभोग के लिए भारत के उत्तरी राज्यों मुख्यतः उत्तर प्रदेश एवं बिहार तक पहुंचती है।

उन्होंने बताया कि भारत में यह पौधा हिमालय के दक्षिणी ढलानों और असम के पूर्वी सीमा के साथ समुद्र तल से दस हजार फीट कि उंचाई पर सबसे उन्नत किस्म का पाया जाता है। यह भारत के मैदानी इलाकों यहां तक कि दक्षिणी भारत के गर्म जलवायु में भी उगाया जाता है। भारत, म्यांमार और नेपाल के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में उगाए गए/तैयार किये गए गांजा, चरस आदि का अवैध रूप से उत्तर तथा उत्तर पूर्व सीमांत के रास्ते से व्यापार किया जाता है और विभिन्न समीपवर्ती राज्यों में भी अपना पैर जमा रहा है ।

बिहार में कब से हो रहा है गांजा का उपयोग।



भारत में भांग, गांजा का उपयोग कम से कम 2000 ईसा पूर्व से किया जाता रहा है। भारतीय समाज में भांग की तैयारी के लिए चरस (राल), गांजा (फुल) और भांग शामिल है। 1510 ई. में गोवा पर पुर्तगालियों द्वारा कब्जा किये जाने के बाद पुर्तगाली भारत में भांग के सेवन और व्यापार से परिचित हो गए थे। इसके बाद ब्रिटिश संसद ने 1798 में भांग, गांजा और चरस इत्यादि पर एक कर अधिनियमित किया, जिसके अंतर्गत कर का उद्देश्य मूल निवासियों के अच्छे स्वास्थ्य एवं विवेक के लिए भांग की खपत को कम करना था। सीमा शुल्क आयुक्तालय पटना, डीआरआई पटना, खुफिया एवं अन्य निवारक एजेंसियां सीमा शुल्क अधिनियमों (एनडीपीएस सहित) के उल्लंघन से संबंधित मामलों पर निरंतर निगरानी रखते हुए इस तरह के अवैध व्यापार को रोकने का प्रयास कर रही हैं। प्रवर्तन एजेंसिंयों द्वारा नशीलें पदार्थों की जप्ती होती है, जो अंततः कानून में निर्धारित प्रकियाओं का पालन करते हुए नष्ट की जाती हैं।