महात्मा ज्योतिबा फुले कि जयंती पर पूरा देश कर रहा है महान समाज सुधारक को याद,भारत के प्रधानमंत्री ने भी किया नमन।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महान समाज सुधारक, दार्शनिक और लेखक महात्मा ज्योतिबा फुले को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। श्रद्धांजलि देने के बाद मीडिया बंधुओं से बात करते हुए मोदी ने कहा कि सामाजिक न्याय के पुरोधा और असंख्य लोगों के लिये आशा के स्रोत के रूप में महात्मा फुले का व्यापक सम्मान है। उन्होंने सामाजिक समानता, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये अथक कार्य किया है।

प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से महान विचारक ज्योतिबा फुले के बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे, जहां मोदी ने कहा था कि महात्मा फुले ने बालिकाओं के लिये स्कूल आरंभ किया था तथा कन्या शिशु हत्या के विरुद्ध आवाज उठाई थी। उन्होंने जल संकट के समाधान के लिये भी अभियान चलाये थे।

श्रृंखलाबद्ध ट्वीट में प्रधानमंत्री ने क्या कहा ?

“सामाजिक न्याय के पुरोधा और असंख्य लोगों के लिये आशा के स्रोत के रूप में महात्मा फुले का व्यापक सम्मान है। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था और उन्होंने सामाजिक समानता, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये अथक कार्य किया। उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि।”

“आज महात्मा फुले की जयंती है और कुछ ही दिनों में 14 तारीख को अम्बेडकर जयंती है। पिछले महीने के दौरान #मन की बात में दोनों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। भारत महात्मा फुले और डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का उनके महान योगदान के लिये सदैव कृतज्ञ रहेगा।”

कौन थे ज्योतिबा फुले?

महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं ”जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।

महात्मा के पीछे की कहानी?

निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी गई। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई उच्च न्यायालय से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत। महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया।



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