COVID-19 : अमरीका से सीखें 10 सबक जिस पर अमल नहीं करना है-फ्रैंक एफ. इस्लाम

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप अक्सर अपने बेतुका बयान और गैर-जिम्मेदाराना फैसलों को लेकर चर्चा में रहते हैं। ऐसे में फ्रैंक एफ. इस्लाम ने उनके कुछ बेहद गैर जिम्मेदाराना फैसले को बताया है। साथ हीं उन फैसलों से मिले दस सबक की भी चर्चा की है। फ्रैंक एफ. इस्लाम वाशिंगटन डीसी स्थित उद्यमी और सामाजिक विचारक हैं।

पढ़िये क्या कहते हैं फ्रैंक ….

अमरीका, जहां दुनिया की सबसे महंगी चिकित्सा व्यवस्था है, कुल मिलाकर कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से सर्वाधिक प्रभावित देश है जहां 15 जुलाई तक 35 लाख लोग संक्रमित हो चुके थे और एक लाख लोग इसके कारण जान गंवा चुके थे। निराशाजनक बात यह है कि इस महामारी के छह माह बीत जाने के बाद भी अमरीका में इसके संक्रमण में चरम से उतार के आसार नहीं दिख रहे।

कोविड-19 के प्रति इसकी शुरुआत से अबतक गंभीर लापरवाही भरे रवैये के कारण ऐसी समस्या भरी स्थिति उतपन्न हुई है। वहां की दस बड़ी खामियां हैं जिन सबसे हम यह सीख सकते हैं कि क्या नहीं करना है।

  1. फैसले राजनीति से प्रेरित होकर लिए गए, वैज्ञानिक आधार पर नहीं। यह नाकामी शीर्ष से राष्ट्रपति ट्रंप के स्तर से शुरू हुई। शुरू में तो वे कोरोना वायरस को मौसमी फ्लू बताकर नज़रंदाज़ करते रहे। उन्होंने उपराष्ट्रपति माइक पेन्स को एक टास्क फोर्स का अध्यक्ष बना दिया जिसे इस मुद्दे पर सलाह देनी थी लेकिन इस टास्क फोर्स को कोई अधिकार नहीं दिये।
  2. इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए कोई क़ानून सम्मत राष्ट्रीय योजना नहीं बनायी गयी। उपराष्ट्रपति की टास्क फोर्स ने राज्यों और स्थानीय निकायों में इस वायरस के मद्देनज़र टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट (जांच और इलाज) के लिए दिशा निर्देश तैयार किये। इसमें वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए मास्क के इस्तेमाल और सामाजिक दूरी बनाने की बात शामिल थी। यह सिर्फ दिशा निर्देश था, क़ानून या अनिवार्य रूप से पालन करने वाले नियम नहीं।
  3. इस वैश्विक महामारी को राज्य का और स्थानीय मामला समझा गया। इस महामारी पर कोई मानक संघीय हस्तक्षेप नहीं था। गवर्नरों और स्थानीय पदाधिकारियों को इससे निपटने के लिए ज़िम्मेदार बनाया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि अलग-अलग राज्यों ने इससे अपनी तरह से निपटना शुरू किया और उसके नतीजे भी अलग-अलग हुए।
  4. राष्ट्रीय स्तर पर जांच, चिकित्सा उपकरण और आपूर्ति सीमित थी। संघीय सरकार ने इसके लिए नाममात्र की राशि निर्धारित की लेकिन आपूर्ति और सप्लाय चेन भयावह रूप से अपर्याप्त थी। इसके लिए संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी राज्यों के मत्थे मढ़ दी गयी और वे विदेशों से ज़रूरी सामान मंगाने के लिए आपस में ही भिड़ते रहे।
  5. इस वैश्विक महामारी को लेकर मिश्रित सन्देश दिये गये। टास्क फोर्स ने देश में दोबारा सब कुछ खुलने तक लगातार ब्रीफ़िंग्स दी लेकिन तभी ट्रंप ने इसे चुप करा दिया। उन्होंने इन ब्रीफ़िंग्स की कमान खुद अपने हाथ में ले ली और इसका इस्तेमाल प्रेस से बहस करने, मेडिकल एक्सपर्ट को झुठलाने और यहां तक कि बिना जांच-सिद्ध दवाओं को बढ़ावा देने में करने लगे।
  6. इस बात पर ज़ोर था कि बाजार दोबारा तेज़ी से खोला जाए। ट्रंप हमेशा बन्दी के खिलाफ थे। जब लोग घरों से बाहर निकलने से बचने लगे तो उन्होंने देश में तुरंत बन्दी खत्म करने की सलाह देनी शुरू कर दी थी। उन्होंने अपने लाखों फ़ॉलोअर्स से ट्वीट कर वर्जिनिया और मिशिगन जैसे राज्यों को मुक्त कराने की बात कही जहां के बारे में उन्हें लगा था कि वहां के गवर्नर दोबारा बाजार खोलने का विरोध करेंगे या इसकी गति धीमी रखेंगे। ऐसा लगता था कि ट्रंप की नज़र सिर्फ अपने दोबारा चुने जाने की संभावनाओं पर थी, चाहे इसके लिए जनता की सेहत दांव पर लग जाए।
  7. एक भाग में एक सीमा में मिली सफलता के आधार पर दूसरे भाग को खोलने में बीमारी की प्रकृति की उपेक्षा की गयी। कैलिफोर्निया, उत्तरपूर्व और मध्य पश्चिमी इलाके इस महामारी के लिए हॉटस्पॉट बने थे। मध्य मई से जून की शुरुआत में उन जगहों पर संक्रमण कमज़ोर पड़ रहा था और देश में ऐसा लग रहा था कि अब चरम स्थिति आ चुकी है। इसलिए, जॉर्जिया, फ्लोरिडा, टेक्सस और एरोजीना जैसे राज्यों ने दोबारा बाजार खोलने में तेज़ी दिखाई। इसका नतीजा यह हुआ कि ये राज्य फिर हॉट स्पॉट बने और अबतक बने हुए हैं।
  8. अमरीका के पास नीतियों को लागू करने की कोई एकसमान प्रक्रिया नहीं थी। बिना ज़रूरत घर से बाहर नहीं निकलने, मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाने के मामले में राज्यों में काफी अंतर था। जॉर्जिया और टेक्सस जैसे राज्यों में जहां के गवर्नर रिपब्लिकन हैं और बड़े शहरों जहां के मेयर डेमोक्रैट थे, दोनों जगह में अंतर था। गवर्नरों ने कोविड -19 से लड़ने के लिए इन क़दमों की सिफारिश की जबकि मेयर को क़ानून के अनुरूप ऐसा करना था।
  9. आर्थिक चिंताओं को गलत तरीके से स्वास्थ्य की चिंताओं पर प्राथमिकता देना भी एक वजह बनी। बाजार दोबारा खोलने का सबसे बड़ा कारण आर्थिक स्थिति को ठीक करना था जो इस वैश्विक महामारी के कारण खराब हुई थी। इसकी बहुत कीमत चुकानी पड़ी।
  10. और शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि एक्सपर्ट की सलाह को लगातार नकारा गया। शुरू से ही ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संक्रमण विशेषज्ञ और टास्क फोर्स के सदस्य डॉक्टर एंटनी फॉसी जैसे विशेषज्ञों की सलाह को कमतर आंका।

कुल मिलाकर, सबसे अधिक प्रभावित राज्यों के कुछ अपवादों को छोड़कर जहां गवर्नरों ने नेतृत्व क्षमता दिखाई, अमरीका ने कोविड-19 से निपटने में पहल करने की नीति न अपनाकर प्रतिक्रिया से काम लिया। इस नाकामी की बड़ी वजह ट्रंप के सिर है जो महीनों मास्क न पहने दिखने के बाद बस हाल ही में सार्वजनिक स्थल पर मास्क पहने दिखे हैं और जो अब भी इस बात पर अड़े हैं कि यह महामारी खुद ब खुद गायब हो जाएगी।

वैश्विक महामारी में व्यक्तिगत, राजनैतिक और पेशेवराना रूप में क्या-क्या नहीं करना चाहिए, ट्रंप इसके आदर्श उदाहरण हैं। उनकी कोरोना वायरस से निपटने की तरकीबें मौजूदा और आने वाले नेताओं के लिए एक मिसाल है कि किसी महामारी से कैसे नहीं निपटा जाए।

ये कुछ बुनियादी सबक़ हैं जो भारत और अन्य देशों के लोग अमरीका के इस स्थिति से निपटने में तबाही भरे तरीके से सीख सकते हैं। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए भारत को इस बात पर ध्यान देना होगा कि दुनिया के संबसे सख्त लॉकडाउन से वैसे नतीजे नहीं मिले जिसकी उम्मीद की गई थी। 

यह भारत के लिए बुरी सूचना है। हालांकि एक उम्मीद की एक किरण भी है। वह है कोरोना जनित मृत्यु दर काफी कम होना। इसके अलावा, भारतीय अधिकारियों के अनुसार, 80प्रतिशत से अधिक एक्टिव केस देश के 720 जिलों में से 49 जिलों के हैं। इसका मतलब है कि काफी बड़ा मामला सात प्रतिशत से कम जिलों में है। टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट का एक सही लक्ष्य लेकर इन हॉट स्पॉट जिलों में बीमारी को चरम से नीचे लाया जा सकता है। यह सुनिश्चित कर कि बीमारी इन इलाक़ों से आगे नहीं फैले, इस वैश्विक महामारी के असर को कम किया जा सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं। उनसे [email protected] संपर्क किया जा सकता है।)