कोरोना वायरस और पलायन की त्रासदी के साथ, श्रमिक… श्रमिक दिवस मनाये कैसे!

तान्या शर्मा, शोध छात्रा

आज संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस ने एक हलचल पैदा कर दी है। दुनिया का एक बड़ा हिस्सा ‘लॉक डाउन’ के दौर से गुजर रहा है। दुनिया की कुल आबादी के लगभग 70% लोग अपने घरों में कैद हैं। कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। स्वास्थ्य के साथ-साथ इस समय पूरी दुनिया एक बड़े आर्थिक संकट की तरफ बढ़ रही है जिसकी वजह से वैश्विक मंदी स्पष्ट रूप से दिख रही है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इससे आर्थिक और श्रम संकट गहराएगा।

कोरोना वायरस से निपटने के लिए भारत में “लॉकडाउन” की नीति का पालन किया जा रहा है। भारत की 130 करोड़ की जनसंख्या प्रशासकीय आदेशों से घरों में बंद है। कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए लॉकडाउन का पालन आवश्यक है। भारत जैसे देश में जहां करोड़ों लोगों का जीवन यापन के लिए रोज काम करना जरूरत है, वहां महीने भर की बेरोजगारी ने उनके जीवन में एक अंधकार भर दिया है।

 

कोरोना वायरस के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव श्रमिकों, कामगारों पर पड़ा है। लॉकडाउन के कारण अनिश्चितता की वजह से देश के शहरों से श्रमिकों एवं कामगारों का पलायन शुरू हो गया था। लाखों की संख्या में कामगार पैदल अपने गांव की ओर निकल गए और यह यात्रा अभी भी जारी है। श्रमिकों में पलायन का दर्द व्याप्त है। रोजगार, घर या भोजन से महरूम शहरों में फंसे समूचे देश से प्रवासी मजदूर अपना थोड़ा बहुत सामान लादे, भूख से बेहाल, थके मांदे, बच्चों के साथ पैदल या बसों में पशुओं की तरह ठुंसकर अपने गांव की ओर लौटने को मजबूर हैं। यहां सोशल डिस्टेंसिंग या फिजिकल डिस्टेंसिंग की कोई गुंजाइश नहीं है। कामगारों के बुझे हुए चेहरे गवाह है कि कोविड-19 ने कितनी भारी उथल-पुथल मचा दी है।

कोरोना वायरस ने दिहाड़ी मजदूरों की कमर तोड़ दी है। गरीबों के लिए यह दोहरी मार है। वे तंग जगहों पर रहते हैं और अगर उनकी कमाई घटती है तो वह कैसे बचेंगे? गरीब मजदूर एवं दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी में जो दुश्वारियां पैदा हुई हैं उसके बारे में कल्पना तक नहीं की गई थी।
आज पूरे देश के श्रमिक, चाहे वे प्रवासी मजदूर हों या सड़कों पर रोज कमाने और खाने वाले, उन लाखों लोगों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। श्रम मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कल्याण योजनाओं के तहत उपकार के रूप में 52,000 करोड़ रुपए की राशि को निकालकर निर्माण क्षेत्र के करीब 3.5 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों के खाते में डालने का निर्देश दिया है। पर लाखों श्रमिक अपंजीकृत हैं और ऐसे में वे इस राहत राशि के पात्र भी नहीं हैं। वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के 1.7 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज को तत्काल राहत देने का कार्य किया है जो एक शुभ संकेत माना जा सकता है। लेकिन देश के कई अर्थशास्त्रियों ने इसे अपर्याप्त बताया है।

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने एक साक्षात्कार में कहा, “अधिकतर उपाय लॉकडाउन के बाद प्रभावी होंगे और लोगों तक आपातकालीन राहत नहीं पहुंचाई जाती है तो लाखों लोग भूख से मर जाएंगे”। विकास अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा ने कहा की ग्रामीण भारत में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए दिहाड़ी मजदूरों को अपनी-अपनी जगह पर बने रहने के लिए सरकार का पर्याप्त उपाय करना श्रमिकों के हित में है।

भारत में कोरोना वायरस ने लाखों प्रवासी मजदूरों के जीवन में अभूतपूर्व स्थिति पैदा कर दी है। आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के अनुसार 2011 से 2016 के बीच लगभग 90 लाख लोग सालाना राज्यों के बीच काम के लिए चले जाते हैं। देश में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या 13.9 करोड़ है। अंत राज्य प्रवासी मजदूर आंदोलन में क्षेत्र राज्य और गंतव्य राज्य हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार प्रवासियों का सबसे बड़ा क्षेत्र है। इसके बाद मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल है। प्रवासियों के लिए प्रमुख गंतव्य दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल हैं। सभी राज्यों में इंट्रा स्टेट माइग्रेशन हो रहा है। सरकार द्वारा इसकी निगरानी या परीक्षण किया जा रहा है। लेकिन कोरोना वायरस की समस्या पूरे देश में बनी हुई है।

श्रमिकों के बीच कोरोना वायरस का डर समा गया है और साथ-साथ अनौपचारिक क्षेत्र में नौकरियों का नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ रहा है। निर्माण, विनिर्माण, रेस्तरॉ, यात्रा और घर की मदद में लॉकडाउन की मार के कारण प्रवासी मजदूर अपने परिवारों को मदद नहीं कर पा रहे हैं। परिणामत: लोग शहरों को छोड़ना जारी रखे हुए हैं। यह तो स्पष्ट हो रहा है कि कोरोना वायरस के कारण डी० शहरीकरण की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

कोरोना वायरस की समस्या लाखों प्रवासी मजदूरों का एक आंदोलन है। सरकार इन प्रवासी मजदूरों को सहायता प्रदान करने की दिशा में दिन रात काम कर रही है। कोरोना वायरस एक जैव आतंकवाद है। यह एक युद्ध है, जिसे इस दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा है। प्रवासी मजदूरों के पलायन से हम इस संकट से निपटने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। एक अध्ययन का मानना है कि यदि एक करोड़ या 10 मिलियन ऐसे प्रवासी, शहरों में चले जाते हैं तो यह स्वास्थ्य प्रणाली के साथ कहर पैदा कर देगा। यदि गांव में यह वायरस फैलता है तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है क्योंकि गांव में समुचित स्वास्थ्य सेवा नहीं है, यहां कोई परीक्षण सुविधा नहीं है, कोई अस्पताल नहीं है और कोई वेंटिलेटर की सुविधा भी नहीं है। अतः सरकार अपनी नीति के माध्यम से ही इस पर काबू पा सकती है। वर्तमान में सरकार की भूमिका के साथ-साथ नागरिक समाज के समर्थन की आवश्यकता है। प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपाय करने की आवश्यकता इस वायरस ने उत्पन्न कर दी है। कल्याणकारी राज्य में सरकार का दायित्व बढ़ जाता है। प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा के कई उपायों की वकालत आज की जा रही है जैसे १) प्रवासी श्रमिकों के लिए बीमारी छुट्टी का भुगतान सुनिश्चित करें। सभी श्रमिकों को अपनी नौकरी खोने के डर के बिना बीमारी छुट्टी लेने में सक्षम होना चाहिए। २) प्रवासी श्रमिक को इस संकट के समय में वित्तीय सहायता प्राप्त करने का प्रावधान होना चाहिए। ३) सभी श्रमिकों को सुरक्षित और स्वस्थ काम करने का अधिकार होना चाहिए। सरकार की ओर से मुफ्त में स्वास्थ्य सेवा का प्रावधान होना चाहिए। ४) उन सभी श्रमिकों के लिए आय समर्थन उपायों को सुनिश्चित करें जिनकी किसी सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच नहीं है। ५) संक्रमित श्रमिक एवं कामगारों के लिए उचित आवास की व्यवस्था की जानी चाहिए। ६) श्रम शोषण और सामाजिक बहिष्कार को कम करने के लिए नियमितीकरण के उपायों का प्रावधान होना चाहिए।

कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण प्रवासी मजदूरों, श्रमिकों की समाआर्थिक स्थिति संकट में है। हमारे सामने कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं :- बेरोजगारी की वैश्विक वृद्धि मानव गतिशीलता को कैसे प्रभावित करेगा? मौसमी प्रवासी श्रमिकों की कमी कृषि जैसे कुछ क्षेत्रों को कैसे प्रभावित करेगी? स्वास्थ्य संकट के आर्थिक परिणाम वैश्विक श्रम बाजार को फिर से कैसे बनाएंगे? स्पष्ट है कि प्रवासी श्रमिक वर्ग इस कोरोना महामारी के खिलाफ युद्ध की अग्रिम पंक्ति में अत्यधिक प्रतिनिधित्व करने वाला वर्ग है।