सुप्रीम कोर्ट ने आरकाम और रिलायंस जिओ के बीच स्पेक्ट्रम साझा करने के समझौते का विवरण मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस जिओ के बीच स्पेक्ट्रम साझा करने के लिये हुये समझौते का विवरण मांगा और सवाल किया कि दूसरी कंपनी के स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने वाली कंपनी से सरकार समायोजित सकल राजस्व से संबंधित बकाया राशि की मांग क्यों नहीं कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि स्पेक्ट्रम निजी नहीं बल्कि सरकार की संपत्ति है और इसका इस्तेमाल करने वाले को ही इसके बकाये का भुगतान करना होगा। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने रिलायंस जिओे और आरकाम के वकीलों से कहा कि स्पेक्ट्रम साझा करने के समझौते का विवरण पेश किया जाये।

पीठ ने दूरसंचार विभाग को भी इस संबंध में आवश्यक दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया और सारे मामले को 17 अगस्त के लिये सूचीबद्ध कर दिया। शीर्ष अदालत ने दूरसंचार विभाग को एयरटेल सहित दूसरी संचार कंपनियों, जो दिवालिया और शोधन अक्षमता संहिता के तहत कार्यवाही का सामना कर रही हैं, के स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल से संबंधित विवरण भी पेश करने का निर्देश दिया। इस मामले की सुनवाई के दौरान आरकाम के लिये रिजोल्यूशन प्रोफेशनल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि सरकार को स्पेक्ट्रम साझा करने के लिये 2016 में हुये समझौते के बारे में सूचित कर दिया गया था और इसके लिये देय शुल्क का भुगतान भी कर दिया गया था।

उन्होंने कहा कि स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा कंपनी के पास ऐसे ही रखा है और इसका कारोबार नहीं हुआ है लेकिन इसे सिर्फ साझा किया गया है। पीठ ने इस पर कहा कि रिलायंस जिओ को आर काम की ओर से बकाया एजीआर का भुगतान करने के लिये क्यों नहीं कहा जा सका क्योंकि यह बकाया राशि तो स्पेक्ट्रम के उपयोग के संबंध में है और जिओ तीन साल से इसका इस्तेमाल कर रहा है। दीवान ने जब यह कहा कि ऋणदाताओं ने आरकाम के लिये समाधान योजना को यूवी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को मंजूरी दी है तो पीठ ने कहा कि वह जानना चाहती है कि यूवी एआरसी के पीछे कौन है।

जिओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन ने कहा कि कंपनी एजीआर से संबंधित बकाये का भुगतान कर चुकी है लेकिन इस सवाल पर उसे निर्देश लेने होंगे। उन्होंने पीठ को स्पेक्ट्रम साझा करने और स्पेक्ट्रम के उपायोग के दिशा निर्देशों के बारे में पीठ को स्पष्टीकरण देने के प्रयास किये और कहा कि कंपनी सभी नियमों का पालन कर रही है और देय शुल्क का भुगतान कर रही है। पीठ ने फिर कहा कि रिलायंस जिओ अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकती है जबकि वह स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर रही है और राजस्व साझा कर रही है। न्यायालय ने 10 अगस्त को दूरसंचार विभाग से जानना चाहा था कि दिवालिया कार्यवाही का सामना कर रहीं दूरसंचार कंपनियों से समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से संबंधित बकाया राशि की वसूली कैसे करेगी? क्या इन कंपनियों के स्पेक्ट्रम बेचे जा सकते हैं? दूरसंचार विभाग ने न्यायालय से कहा था कि उसका यह मानना है कि दिवालिया कार्यवाही का सामना कर रही दूरसंचार कंपनियां स्पेक्ट्रम नहीं बेच सकती क्योंकि यह उनकी संपत्ति नहीं है।

न्यायालय ने उस समय कहा था कि अदालत को दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के तहत दिवालिया कार्यवाही के लिये गयी दूसंचार कंपनियों की वास्तविकता का पता लगाने की आवश्यकता है। यही नहीं, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि न्यायालय इन दूरसंचार कंपनियों के दिवालिया प्रक्रिया के लिये जाने की वजह जानना चाहता है और इन कंपनियों की देनदारियों के बारे में भी जानना चाहता है। उसने साथ ही कहा कि दिवाला प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की जल्दी क्या थी।

शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को स्पष्ट कर दिया था कि वह दूरसंचार कंपनियों के एजीआर से संबंधित बकाया, जो 1.6 लाख करोड़ रूपए है, के पुन:आकलन या पुन: गणना के बारे में एक सेंकण्ड भी कोई दलील नही सुनेगी। न्यायालय ने यह भी कहा था कि इस बकाया राशि का भुगतान करने के लिये 15 से 20 साल का समय देने का प्रस्ताव तर्कसंगत नहीं है।