“बच्चों को एक सुरक्षित माहौल में सीखना जारी रखने एवं अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए एक रोडमैप बनाना अति आवश्यक”: संजय कुमार

शिक्षा विभाग, बिहार सरकार और यूनिसेफ के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा कोविड-19 महामारी, लगातार लॉकडाउन और विद्यालय बंद होने के आलोक में बिहार में बच्चों के सीखने की निरंतरता को सुनिश्चित करने हेतु रणनीतियों एवं समाधानों पर चर्चा करने के लिए एक ऑनलाइन बैठक का आयोजन किया गया।

विद्यालय का कोई विकल्प नहीं

संजय कुमार, अपर मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग, बिहार सरकार ने विभाग द्वारा हाल के दिनों में की गई कुछ पहल को रेखांकित करते हुए कहा कि – “हम जानते हैं कि बिहार में अधिकांश बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं अथवा सामग्री का उपयोग नहीं कर सकते हैं। अतः हम वैकल्पिक समाधान तलाश रहे हैं और केंद्र सरकार से बिहार के बच्चों के लिए शिक्षा में डिजिटल अंतर को पाटने हेतु डिजिटल उपकरण उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया है। संजय कुमार ने आगे कहा कि – “विद्यालय का कोई विकल्प नहीं हो सकता है, क्योंकि विद्यालय शिक्षा के लिए एक सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं। बच्चों को उनके सीखने और समग्र विकास के लिए शिक्षकों, सहपाठियों, दोस्तों, मध्याह्न भोजन तथा अन्य सभी सुविधाओं की आवश्यकता होती है।” उन्होंने महामारी एवं लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए निरंतर सीखने के लिए एक व्यापक रोडमैप विकसित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया, जिसमें कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर भी शामिल है जो बच्चों के लिए सबसे कठिन दौर हो सकता है।

टेरी डर्नियन, शिक्षा प्रमुख, यूनिसेफ इंडिया ने कोविड के संदर्भ में शिक्षा को पुनर्कल्पित (Reimagine Education) करने के लिए अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक दोनों उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि हाशिए पर के बच्चों अपनी शिक्षा जारी रख सकें यह सुनिश्चित करने के लिए कई तरह के उपायों को तैयार करना महत्वपूर्ण होगा; साथ ही, इसकी गुणवत्ता की निगरानी भी करनी होगी कि बच्चे कितना सीख पा रहें है।

कोविड-19 महामारी बाल अधिकारों का संकट

यूनिसेफ बिहार की प्रमुख नफीसा बिंते शफीक ने शिक्षा विभाग द्वारा सीखने की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए सही समय पर की गई पहल की सराहना की। उन्होने कहा कि बिहार पहला राज्य है, जिसने यूनिसेफ के सहयोग से हाशिए पर के बच्चों एवं समुदाय के लिए दूरदर्शन के साथ-साथ मोबाइल ऐप और मोबाइल बसों के माध्यम से कक्षाएं प्रारम्भ की। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कोविड-19 महामारी बाल अधिकारों का संकट था। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट-2020 के अनुसार भारत में कोविड-19 महामारी के कारण विद्यालयों के लंबे समय तक बंद रहने के कारण बच्चों के शैक्षणिक नुकसान के अलावा आने वाले समय में देश की आमदनी में 400 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का नुकसान हो सकता है।

प्रोटोकॉल के साथ विद्यालयों को फिर से खोला जाए

यूनिसेफ बिहार प्रमुख ने सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ विद्यालयों को सुरक्षित रूप से फिर से खोलने की अपील की। डिजिटल अंतर को पाटने के लिए वर्तमान में उपयोग नहीं होने वाले सरकारी नकद प्रोत्साहनों (cash incentive schemes) में से कुछ को डिजिटल उपकरणों (solar-powered tablets/digital devices)-पाठ्य पुस्तकों एवं अन्य शैक्षिक संसाधनों, के लिए उपयोग करने की संभावना तलाशने का भी उन्होने सुझाव दिया।

उन्होने कहा कि – बिहार में सबसे अधिक वैसे हाशिए पर रहने वाले बालक एवं बालिकाओं की सीखने की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो ड्रॉप आउट, बाल विवाह, बाल श्रम और तस्करी में धकेले जाने की चपेट में हैं। गरीब पjरिवारों के बच्चों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदायों, प्रवासी मजदूरों, लड़कियों, विकलांगों, तथा चाइल्ड केयर संस्थानों के बच्चों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

एक विस्तृत प्रस्तुति में, प्रसन्ना ऐश, अनुश्रवण और मूल्यांकन विशेषज्ञ और प्रमिला मनोहरन, शिक्षा विशेषज्ञ, यूनिसेफ बिहार ने कोविड-19 की दूसरी और तीसरी लहर से संबंधित परिदृश्यों, बच्चों की शिक्षा पर इनके प्रभाव तथा डिजिटल अंतर पर प्रकाश डाला। कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं।

सीखने की हानि जारी रहेगी क्योंकि कई छात्रों के पास डिजिटल सामग्री तक पहुँच बनाने के लिए स्मार्ट फोन की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

संभावित है कि लगभग 75 लाख बच्चों को सीखने की हानि का अनुभव होगा, यह मानते हुए कि 31% छात्रों के पास डिजिटल उपकरणों तक पहुंच नहीं है; 3% या लगभग 7 लाख छात्रों की स्कूल वापसी की उम्मीद नहीं है;
किशोरों (14-18 वर्ष की आयु) में लगभग 5.49 प्रतिशत लड़कियों और 0.26 प्रतिशत लड़कों के स्कूल छोड़ने की संभावना है।

बच्चों ने कम से कम एक विशिष्ट भाषा क्षमता खो दी

अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा जनवरी 2021 में कक्षा 1 से 6 के बच्चों के लिए कराये गए अध्ययन ‘महामारी के दौरान सीखने की हानि’ के अनुसार सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों में से 92% बच्चों ने पिछले वर्ष की तुलना में औसतन कम से कम एक विशिष्ट भाषा क्षमता (language ability) खो दी है। साथ ही सभी कक्षाओं में औसतन 82% बच्चों ने पिछले वर्ष की तुलना में कम से कम एक विशिष्ट गणितीय क्षमता (mathematical ability) खो दी है।
हालांकि एनएफएचएस 5 के अनुसार, 93 प्रतिशत घरों में मोबाइल है, परंतु केवल 36.5 प्रतिशत के पास इंटरनेट है और केवल 3.6 प्रतिशत के पास कंप्यूटर है। केवल 2 प्रतिशत स्कूलों में कार्यात्मक कंप्यूटर हैं (यूडीआईएसई 2019-20)

सीखने की निरंतरता बनाए रखने के लिए रोडमैप

बैठक में शिक्षा विभाग, बिहार एवं यूनिसेफ के अधिकारियों के बीच बच्चों में सीखने की निरंतरता बनाए रखने के लिए रोडमैप पर एक साथ काम करने की सहमति बनी। इसके लिए सबसे हाशिए पर के बालक और बालिकाओं तक पहुँच बनाने पर ध्यान देने, मिश्रित डिजिटल एवं शिक्षण के अभिनव तरीकों में शिक्षकों, माता-पिता, युवाओं की सहभागिता और उनके कौशल को मजबूत करने, मानसिक स्वास्थ्य, काउन्सलिंग का एकीकरण तथा ऑनलाइन सुरक्षा आदि पर मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी, ताकि राज्य के हर बालक एवं बालिका को शिक्षा के अपने अधिकार को पाने और अपनी पूरी क्षमता विकसित करने का समान अवसर प्राप्त करना सुनिश्चित किया जा सके।

बैठक में  संजय सिंह, राज्य परियोजना निदेशक, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद; डॉ. रंजीत कुमार सिंह, निदेशक प्राथमिक शिक्षा; गिरिवर दयाल सिंह, निदेशक, माध्यमिक शिक्षा; अमित कुमार, उप निदेशक माध्यमिक शिक्षा एवं यूनिसेफ़ बिहार के अधिकारीगण – उर्वशी कौशिक, मंसूर कादरी, निपुण गुप्ता, प्रभाकर सिन्हा, बंकू बिहारी, गार्गी साहा, बसंत सिन्हा, सोनिया मेनन, सुधाकर रेड्डी और सौमिक सिन्हा ने भाग लिया।