कोरोना महामारी से भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे बचाया जाए ?

प्रो. तपन कुमार शाण्डिल्य  की कलम से…
(अर्थशास्त्री, पूर्व कुलपति)

कोविड-19 ने सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा प्रभाव डाला है। लॉक डाउन के कारण हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है। देश के सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। ऐसी संभावना भी है कि देश में संकट की स्थिति बनी रहेगी। क्योंकि संपूर्ण विश्व लॉकडाउन की चपेट में है। कोरोना से निपटने के लिए कई उपायों की वकालत अर्थशास्त्रियों के द्वारा की जा रही है। चर्चा का विषय बना हुआ है कि इस महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को धरातल पर कैसे लाया जाए। मंदी से निपटने के लिए रिजर्व बैंक भी अपनी मौद्रिक नीति जैसे अस्त्र का प्रयोग कर रहा है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस मंदी से निबटने के लिए ब्याज दर में कटौती की वकालत की है। कुछ लोगों का मत है कि ऐसी स्थिति में सरकार को सब्सिडी देकर निर्माण उद्योग को बचाए रखा जाए। लेकिन अनिश्चितता की स्थिति में इस प्रकार की सब्सिडी नीति भी कारगर नहीं होती।इस नीति का अनुसरण का अर्थ केवल धन की बर्बादी है।

लोन की स्थिति में सरकार चुपचाप हो जाती है। मंदी की स्थिति में सब्सिडी नीति का सहारा लिया जाता है और घरेलू उद्योगों को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए केवल सरकार संकट के बाद देश के अंतर्गत उद्योगों को सब्सिडी देकर घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकती है। लेकिन यह स्थिति लॉक डॉन के बाद करना उचित है। कोरोना वायरस एक विश्वव्यापी संकट है। प्रत्येक देश इससे निपटने का रास्ता खोज रहा है। ब्याज की दरों में कटौती कर निवेश बढ़ाना निवेश बढ़ाया जाना मंदी का उपचार भी हो सकता है। हम कोरोना के संकट के लिए यह वकालत करते हैं कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा ब्याज दर में कटौती करके विनियोग को बढ़ावा दिया जाए।

इस संबंध में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मौद्रिक नीति एवं राजकोषीय नीति की चर्चा की है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वर्तमान गवर्नर शक्ति कांत दास ब्याज दर में कटौती की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन हम जानते हैं कि व्यापारी अर्थव्यवस्था में निवेश तभी करता है जब उसे विश्वास रहता है कि उत्पादित माल को उचित कीमत पर बेचकर लाभ कमाया जा सकेगा। और ऋण की अदायगी कर सकेगा। यही स्थिति आम उपभोक्ता की भी होती है उपभोक्ता ऋण तब लेता है जब उसे यह भरोसा होता है कि ऋण से अधिक आय बनी रहेगी। और इस आय से ऋण की अदायगी किया जा सकेगा।

यह स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक की ब्याज दर में कटौती का लाभ तभी महत्वपूर्ण होता है, जब निवेशकों को भविष्य की मांग और उपभोक्ताओं को भविष्य की आय पर विश्वास हो। मौजूदा हालात में यहां हमें यह देखना होगा कि जब संपूर्ण विश्व संकट के दौर से गुजर रहा हो तो अर्थव्यवस्था मंदी की ओर है। मांग का अभाव है। रोजगार में अनिश्चितता है। उसमें ब्याज की दर शून्य भी कर दिया जाये तब भी निवेशक एवं उपभोक्ता ऋण लेकर खपत नहीं करेंगे। ऐसा इसलिए होता है कि उन्हें भविष्य में होने वाली आय की उम्मीद धुंधली नजर आती है। तीसरे सुझाव के रूप में वह भी एक प्रभावकारी साबित हो सकता है। सरकार का खर्च बढ़ा कर काम पैदा करें।

प्रोफेस किंस जो बीसवीं शताब्दी के अर्थ सबसे बड़े अर्थशास्त्री थे। उन्होंने भी संकट के समय अर्थव्यवस्था में विनियोग करने की वकालत की थी। सरकार सार्वजनिक व्यय के द्वारा अर्थव्यवस्था में मांग पैदा कर सकती है। सरकार को ये ध्यान में रखना चाहिए कि वर्तमान में कोरोना वायरस विश्वव्यापी समस्या है। इससे निपटने के लिए स्वास्थ संबंधी सेवाओं पर सरकारी वह देना चाहिए। स्वच्छ पानी एवं हवा के लिए विशेष विनियोग आवश्यक है।

नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमृत सेन ने भी स्वास्थ संबंधी सेवाओं के लिए विनियोग की बात कही है। इसलिए सरकार को इन सेवाओं के द्वारा आय प्राप्त करने का एक ठोस नीति बनाना चाहिए। स्वास्थ संबंधी सेवाओं में सुधार कर विकासशील देश में राजा से बढ़ाया जा सकता है। इससे पर्यावरण संतुलित होगा वर्तमान में कोरोना वायरस जैसे संकट से उबरने के लिए स्वास्थ संबंधी सेवाओं पर निवेश को बढ़ावा मंदी से उबरने का कार्य संभव हो सकता है।

यहां यह कहना उचित है कि संकट यानी मंदी के दौर में इस नीति के द्वारा अर्थव्यवस्था में आए उत्पन्न नहीं कर पाएंगे। हमें दूसरा भी कभी ढूंढना ही पड़ेगा स्थानीय उत्पादन को बढ़ाकर स्थानीय राहत को बढ़ाया जाए। कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा रही है। अतः यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तन करें आप देखें कि कोरोना वायरस कहां है? भारतीय अर्थव्यवस्था का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि कोरोना का संकट उन क्षेत्रों में ज्यादा आया है, जहां पर विश्व अर्थव्यवस्था से हमारा गहरा संबंध है। उदाहरण स्वरूप हमारे देश में विदेशी पर्यटक आते हैं और हमारे इंजीनियर विदेशों में जाकर काम करते हैं। इनके द्वारा देश में कोरोना वायरस लाया गया। दूसरी ओर जिन क्षेत्रों में हम निर्यातकों और आया आया तो पर ज्यादा निर्भर हैं।

देखा गया है कि भारतीय कार उद्योग में ऑटो पार्ट्स ज्यादा चीन से आयात करते हैं। ऐसे उद्योग चीन पर आश्रित हो गए ऐसे उद्योग वर्तमान में ज्यादा प्रभावित होंगे। हम कह सकते हैं कि कोरोना संकट भारत को ऐसे उद्योग को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा, यह तो समय ही बताएगा। सच पूछा जाए तो आज मंदी के दौर में घरेलू उद्योग से बढ़कर घरेलू खपत बाजार बनाकर समस्या से निजात पा सकते है।

एक विशाल विकासशील अर्थव्यवस्था में घरेलू उद्योग पर निर्भरता का वकालत हमें गांधी के विकास मॉडल में भी देखने को मिलता है। गांधीजी चाहते थे कि आधुनिक तकनीक मानव केंद्रित प्रकृति संगत बने।प्रकृति के साथ उनका विरोधाभास ना हो। वह मनुष्य के सीजन शीलता के अनुरूप हो वह ग्रामीण स्वालंबन आत्मनिर्भरता, कृषि क्षेत्र के वैज्ञानिक विकास, कुटीर उद्योगों का विस्तार उत्पादन एवं वितरण प्रणाली का विकेंद्रीकरण स्वदेशी सर्वोदय अर्थ, विषमता का उन्मूलन के आर्थिक सिद्धांतों के माध्यम से भारत को उसका पुराना आत्म सम्मान दिलाने की बात करते हैं। गांधी के आर्थिक वर्ग के विकास में मानवीय पक्ष को शामिल करके इसे कल्याणकारी बनाने की बात कही गई थी। आज कोरोना के संकट से उबरने के लिए हमें आर्थिक विकास में गांधियन मॉडल पर बल देने की भी आवश्यकता है।

                                                                           (ये लेखक के अपने विचार हैं)