देश में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के हालात भयावह: क्या चरमराती स्वास्थ व्यवस्था और डॉक्टरों की शहादत से कोरोना की जंग जीती जा सकती है!

बढ़ते कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बेहद घातक साबित हो रही है और हर दिन सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं। उनसे होने वाली मौत के साथ अब ये विभिन्न कोरोना प्रहरी के साथ डॉक्टरों को भी अपनी गिरफ्त में ले रहा है। जहाँ देश में कुल 2,17,353 नए मामले आने के बाद कुल पॉजिटिव मामलों की संख्या 1,42,91,917 हो चुकी है। जबकि 1,185 नई मौतों के बाद कुल मौतों की संख्या 1,74,308 हो गई है। गुरुवार को पहली बार इसने एक दिन में दो लाख संक्रमण का आंकड़ा पार कर लिया। ये इससे एक दिन पहले के मुकाबले 9 फीसदी अधिक था। इस दौर 1184 मरीजों की मौत हुई जो पिछले साल सितंबर के बाद सबसे ज्यादा है।

देखने को ये मिल रहा कि अब यहाँ भी धीरे धीरे मौत के ऑकड़े में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है। आज गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों से खबर आ रही है कि शमशान घाट और कब्रिस्तान छोटे पड़ रहे हैं। एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि सरकार के लॉकडाउन नाईट कर्फ्यू जैसे प्रयासों के बाद भी क्या हम अपने घरों में खुद को सुरक्षित मान रहे?

दूसरी ओर अपनी जान जोखिम में डाल कर स्वास्थ कर्मी लोगों का इलाज कर रहे हैं। अगर स्वास्थ हो रहे लोगों के अनुपात को देखें तो ये कहना गलत नहीं होगा एक बड़ी संख्या में लोग स्वास्थ भी हो रहे हैं और इनकी ही वजह से अपने घर भी लौट रहे है।

इसे लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी डर जताया है।

उन्होंने ने महामारी से निपटने के लिए दीर्घकालिक प्रबंधों की आवश्यकता पर जोरे देते हुए कहा, ‘स्थिति अत्यंत गंभीर है और कोई नहीं जानता कि यह कब तक रहेगी।’ इसकी कोई गारंटी नहीं है। घर के घर कोविड ग्रस्त हैं और आने वाले 15 दिन या 1 महीने में क्या होगा यह कहना मुश्किल है।

वैसे अभी तक देश में कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मरीज महाराष्ट्र से हैं। लेकिन, शहर में कोरोना से जंग लड़ने वाले डॉक्टरों ,नर्सों और बाकी मेडिकल स्टाफ की संख्या कम होती जा रही है। कुछ लोग संक्रमित हो चुके हैं और कई ने कोरोना के खौफ एवं दूसरा कारण बता काम पर आना छोड़ दिया है। बीएमसी लगातार डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की भर्ती के इंतजार में है, जबकि उसे जरूरत के मुताबिक डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ नहीं मिल पा रहे हैं। मौजूदा स्थिति ये भी बताई जा रही है कि कई अस्पतालों में तो हाउसकीपिंग स्टाफ की भी किल्लत होने लगी है। जिन लोगों के पास अस्पतालों की निगरानी का जिम्मा है, वह कहते हैं कि आखिर कब तक वह स्टाफ को काम पर आने के लिए मनाते रहेंगे।

स्थिति अत्यंत गंभीर है, स्वास्थ्यकर्मी भी हो रहे कोरोना से प्रभावित

बिहार सरकार के स्वास्थ विभाग द्वारा जारी आकड़ो के अनुसार अभी तक बिहार की राजधानी पटना में  380 माइक्रो कन्टेनमेंट जोन बनाये जा चुके हैं। साथही बिहार में खबर लिखने तक का अकड़ा कुल 29078 कोरोना पॉजिटिव है, लेकिन इन सभों के बीच सबसे परेशान करने वाली खबर देश के विभिन्न हिस्से से सामने आ रही है वो है वो है स्वास्थ कर्मियों के कोरोना संक्रमित होने की।

ज़ाहिर है कहीं न कहीं चूक तो हुई है ऐसे में विभिन्न डॉक्टरों एवं स्वास्थ कर्मियों द्वारा सरकार से गुहार लगाना कि हमें पर्याप्त सुविधा मुहैया करें गलत नहीं है

‘स्वास्थ्य कर्मियों को चार गुना ज़्यादा ख़तरा होता है’

जानकारों कि माने तो , “किसी भी ख़तरनाक बीमारी के वक्त स्वास्थ्य कर्मी आम लोगों के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा ख़तरे का सामना कर रहे होते हैं। दूसरा ख़तरा स्वास्थ्य कर्मियों के परिवार को होता है। ये ज़रूरी है कि जब आप घर जाते हैं तो कोई वायरस लेकर घर ना जाएं, नहीं तो आपका परिवार भी संक्रमित हो सकता है। यही वजह है रही है कि ज़यादा टार डॉक्टर सेल्फ आइसोलेशन में परिवार से दूर हूं।”

साथही “जिस प्रकार मामले बढ़ रहे हैं ऐसे में डॉक्टरों के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं। साथही डॉक्टरों की कमी के बीच ये सवाल भी उठता है कि अगर मरीज़ों का इलाज करने वाले लोग ही बीमार पड़ जाएंगे, तो मरीज़ों को कौन देखेगा? इसलिए ज़रूरी है कि डॉक्टर की सेहत ठीक रहे। ये तभी हो सकता है जब डॉक्टर्स को सारी प्रयाप्त सुविधा भी मिले।”

पिछले वर्ष कोरोना महामारी के बीच मंत्री मंगल पाण्डेय जी की माने तो देश में 10 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं जिनमें बिहार में पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या केवल 40,043 है। परन्तु वर्तमान में, यदि मेडिकल कॉलेज में कार्यरत डॉक्टर को मिला कर भी, राज्य में लगभग केवल 6,830 डॉक्टर ही काम कर रहे हैं।

अभी भी राज्य में डॉक्टरों के 75% से ज्यादा पद खाली

2019 में बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि डॉक्टरों के 57% पद खाली हैं। नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों के भी 75% पद रिक्त है। पिछले साल 16 मई 2020 को बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने पटना उच्च न्यायालय को बताया था कि राज्य में डॉक्टरों के कुल 11 हजार 645 स्वीकृत पदों में से 8 हजार 768 पद खाली पड़े हैं। इन 8 हजार 768 खाली पड़े पदों में से 5 हजार 600 पद ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। पिछले दो साल में पेश किए गए इस आंकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की दुर्दशा क्यों है? कोरोना से ज्यादा मैन पावर की बीमारी से स्वास्थ्य महकमा जूझ रहा है।

हेल्थ सिस्टम को लेकर सरकार की अनदेखी

यदि हम बिहार सरकार के पूरे बजट की बात करें तो बिल्डिंग पर बिल्डिंग बनाने की बात है, वहीं मैनपावर बढ़ाने का जिक्र तक नहीं है। गौरतलब है कि बजट में मैनपावर बढ़ाने के नाम पर 1 हजार 539 फार्मासिस्टों, 163 ईसीजी टेक्नीशियन और 1 हजार 96 ओटी सहायक की नियुक्ति की बात जरूर कही गई थी। लेकिन डॉक्टरों और नर्सों के खाली पड़े पदों को भरने के बारे में कोई बात नहीं की गई। राज्य में कुल 11 हजार 875 सरकारी अस्पताल हैं, इनमें से 9 हजार 949 पंचायत स्तरीय स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं, जिनका जिम्मा नर्सों पर होता है। बाकी 2 हजार 26 अस्पतालों की बात की जाए, तो इनमें से ज्यादातर एक डॉक्टर और एक या दो नर्सों के भरोसे चलते हैं। जबकि 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि राज्य के हर अस्पताल में औसतन 308 ओपीडी मरीज पहुंचते और 55 भर्ती होते हैं।

देश में कम पड़ रही है कोरोना योद्धाओं की गिनती

ग्रामीण भारत का एक बड़ा इलाका डॉक्टरों की कमी के संकट से जूझ रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ताज़ा रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट 2019-20 रिपोर्ट के मुताबिक कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों में डॉक्टरों की कमी 76.1% है। ग्रामीण कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों में सर्जन की कमी 78.9%, फिजिशियन की 78.2% और शिशु रोग विशेषज्ञों की कमी 78.2% है।

कोरोना महामारी की जंग केवल डॉक्टरों की कमी तक सीमित नहीं है। पिछड़े ज़िलों में ऑक्सीजन और हॉस्पिटल बेड का संकट भी बढ़ता जा रहा है। डॉक्टरों और स्वास्थ्य संसाधनों की कमी का संकट पिछड़े इलाकों में गहराता जा रहा है। दरअसल कोरोना संकट से पहले से डॉक्टरों और महत्वपूर्ण स्वस्थ्य सम्बंधित संसाधनों का आभाव झेल रही कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों की वजह से देश के ग्रामीण और पिछड़े ज़िलों में ग्रामीण इलाकों में कोरोना का साया गहराता जा रहा है। जैसे जैसे कोरोना के मामले अप्रत्याशित तरीके से बढ़ते जा रहे हैं संकट का दायरा बढ़ता जा रहे और इससे निपटने की चुनौती भी।

देश में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के हालात भयावह

कोरोना के अचानक बढ़े मामलों के कारण देश में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के हालात भयावह हैं। हफ्ते भर पहले भोपाल से खबर आ रही है कि जब दर्द से तडपते एक मरीज को एंबुलेंस से लेकर उसके परिजन पहुंचे। वहां इमरजेंसी में मौजूद ड्यूटी डॉक्टर ने बाहर आकर कह दिया कि अस्पताल में बिस्तर खाली नहीं हैं। मरीज तेज दर्द से एंबुलेंस में तडप रहा था उसके स्‍वजन डॉक्टर के सामने हाथ जोडकर इलाज करने की गुहार लगाते रहे, लेकिन डॉक्टर ने देखा तक नहीं। करीब दो घंटे तक आरजू-मिन्नतें करने के बाद जब डॉक्टर ने मरीज को भर्ती नहीं किया तो परिजन उसे लेकर एक निजी अस्पताल चले गए। यदि बात पिछड़े इलाकों की तारें तो  पूरे घटनाक्रम का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुआ है।

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के एक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला ने ऑक्सीजन की कमी की वजह से दम तोड़ दिया। उसके परिवार का आरोप है कि वो ऑक्सीजन के लिए कराहती रही लेकिन समय पर ऑक्सीजन मुहैया नहीं हो सका। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर से करीब 200 किलोमीटर दूर कटनी में भी मरीज़ ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। गुरुवार को जालपा वार्ड निवासी कल्पना नौगरहिया को उनके पुत्र हिमांशु गुप्ता एम्बुलेंस से गम्भीर हालत में जिला अस्पताल लाए लेकिन मां को ऑक्सीजन मुहैया करने में काफी संकट झेलना पड़ा। हिमांशु गुप्ता ने कहा, “मेरी मां की जान को बहुत खतरा बना हुआ है। समझ में नहीं आ रहा है। 1% ऑक्सीजन  भी नहीं दी जा पा रही है। अब स्थिति ये आ गयी है कि वो बचेंगी भी या नहीं।”

इसी तरह पिछले मंगलवार की बात है झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता रांची सदर अस्पताल का हाल जानने गये थे, लेकिन अस्पताल से निकलते वक्त उन्हें अपनी ही व्यवस्था ने शर्मसार कर दिया। कोरोना मरीजों का हाल जानने पहुंचे स्वास्थ्य मंत्री को एक मरीज की बेटी ने बोलती बंद कर दी।

कोरोना के चलते अपने पिता को खोने वाली बेटी ने मंत्री बन्ना गुप्ता से कहा,’मंत्री जी यहीं (अस्पताल परिसर में) डॉक्टर- डॉक्टर चिल्लाती रह गई, लेकिन कोई डॉक्टर नहीं आया। अब आप क्या करेंगे। मेरे पिता को वापस लाकर देंगे। आप तो खाली वोट लेने आएंगे।’

मौके पर मौजूद लोग महिला को समझाते रहे और घर जाने के लिए कहते रहे, लेकिन वो मंत्री के सामने चिल्लाते रही। दरअसल पवन गुप्ता नामक शख्स की तबीयत बिगड़ने पर घरवाले उन्हें हजारीबाग से रांची लाए थे। परिजन पवन गुप्ता को भर्ती कराने के लिए अस्पताल दर अस्पताल भटकते रहे, लेकिन कहीं बेड नहीं मिला. आखिर में परिजन रांची सदर अस्पताल पहुंचे। यहां अंदर स्वास्थ्य मंत्री निरीक्षण कर रहे थे। बाहर पवन गुप्ता की तड़प-तड़प कर जान चली गई।

अब यह किसी एक शहर या कसबे की कहानी नहीं है, बल्कि हर दिन किसी न किसी शहर से ऐसी एक दास्तान सुनने को मिल रही है।

मरीजों की लापरवाही भी है मौतों के बढ़ते अकड़े का कारण

कोरोना की चपेट में कई देश बुरी तरह आ चुके हैं। इस दौरान थोड़ी सी भी लापरवाही आपकी जान ले सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक, कई लोग अपनी बीमारी को छिपा ले रहे हैं और डॉक्टरों को नहीं बता रहे। नतीजतन, इससे उनकी स्थिति 2-3 दिन बाद ही ज्यादा गंभीर हो जा रही है। यहां तक की तबीयत बिगड़ने पर इन्हें ऑक्सीजन और वेंटिलेटर तक की जरूरत पड़ रही है।

इस बात को खुलासा कोविड कंट्रोल रूम में मरीजों के घर वालों द्वारा फोन कर मांगी जा रही मदद से हुआ है। मरीजों की लापरवाही ने डॉक्टरों को टेंशन में डाल दिया है। डॉक्टरों का साफ कहना है कि चाहे कोई भी बीमारी हो , बिल्कुल न छिपाएं। क्योंकि, इससे समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता और मरीज की जान पर बन आती है। सीएमओ डॉ. संजय भटनागर बताते हैं कि स्वास्थ्य विभाग की टीम कोरोना से संक्रमित मरीजों को फोन कर सेहत का हाल लेती है। इस दौरान टीम पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारी पूछती है। लेकिन, बावजूद इसके मरीज पुरानी बीमारी छिपाकर होम आइसोलेशन के विकल्प का चुनाव करते हैं।