कोरोना महामारी ने भारतीय न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ और सशक्त बनाने का हमें मौका दिया-डॉ. S N PATHAK

झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ० एस० एन० पाठक, जुवेनाइल जस्टिस कमेटी के सदस्य, जाने-माने अधिवक्ता और संवैधानिक विशेषज्ञ, नामित वरीय अधिवक्ता, झारखंड उच्च न्यायालय, भारत सरकार के वरीय काउंसेल ने “नोबेल कोरोना वायरस प्रकोप में भारतीय न्यायपालिका की कार्यविधि” पर अपना व्याख्यान दिया। मौका था पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस में आयोजित वेबिनार का।

न्यायपालिका को सेवा दायक संस्था के रूप में हो न्यायपालिका-डॉ. एस. एन. पाठक

उन्होंने कहा कि महामारी ने भारतीय न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ और सशक्त बनाने का हमें मौका दिया है। उन्होंने कहा कि तकनीकी जानकारी का प्रसार न्यायालय से संबंधित अन्य कार्य बल जैसे अधिवक्ता गण, उनके लिपिक, स्टेनोग्राफर, टाइपिस्ट, के बीच कर उनमें तकनीकी ज्ञान के विश्वास को बढ़ाने पर बल दिया। आगे उन्होंने कहा कि न्याय व्यवस्था एवं न्यायिक प्रक्रिया के अमूल्य परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि अब संप्रभु कार्य से अलग हटकर सेवा दायक संस्था के रूप में समाज में अपनी महत्ता स्थापित करना आवश्यक हो गया है। ई-फाइलिंग व्यवस्था को सुलभ एवं सस्ता बनाने पर बल दिया, जिसे आम जनता भी आसानी से समझ सके और इस व्यवस्था को सहर्ष स्वीकार करे।

महामारी को दें अवसर का रूप

कोविड-19 पैनडेमिक को एक अवसर के रूप में स्वीकार कर सभी नागरिकों को नए तकनीक को सभी क्षेत्रों में लागू कर नये भारत की स्थापना की महत्व पर प्रकाश डाला। सभी जिला एवं अनुमंडल स्तर के न्यायालयों को भी डिजिटलाइजेशन कर अमूल्य परिवर्तन कर न्यायिक व्यवस्था को सुलभ तकनीक आधारित बनाने की बात की जिससे न्यायालय कार्य से संबंधित अधिवक्ता एवं अन्य कर्मचारी गण ने सहर्ष आसानी से अपना सके जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर में बचत हो।

अतिक्रमण, दबाव तथा हस्तक्षेप से मुक्त हो न्यायपालिका-प्रो. शांडिल्य

कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ० तपन कुमार शांडिल्य ने अपने अध्यक्षीय और उद्घाटन भाषण में सबों का स्वागत करते हुए कहा कि आज के समय में भारतीय न्यायपालिका की प्रासंगिकता क्या है? किस प्रकार भारतीय न्यायपालिका के विभिन्न आयामों के बीच सामंजस्य लाया जाए, यह एक विचारणीय विषय है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण, दबाव तथा हस्तक्षेप से मुक्त एक स्वतंत्र न्यायपालिका इस व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है।

प्रोफेसर डॉ० रश्मि अखौरी, व्याख्यान श्रृंखला की संयोजक और अध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग ने मुख्य वक्ता माननीय न्यायाधीश डॉ० एस० एन० पाठक के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी अभिरुचि न्याय प्रणाली के साथ-साथ शैक्षिक प्रणाली में भी है। माननीय न्यायाधीश शांत, हंसमुख, प्रभावशाली और एकांतवासी व्यक्तित्व के हैं, जिनके जीवन का उद्देश्य न्याय को प्रकाश देना है ना की तपिश। वे भारतीय न्यायपालिका के हरमीत के नाम से जाने जाते हैं। प्रोफेसर डॉ० रश्मि अखौरी ने व्याख्यान श्रृंखला का संचालन किया।

डजिटलाइजेशन ऑफ कोर्ट का अर्थ आधुनिकरण नहीं -डॉ० रचना सुचिनमई

कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ० रचना सुचिनमई ने कहा कि डिजिटलाइजेशन ऑफ कोर्ट का अर्थ आधुनिकरण नहीं समझना चाहिए बल्कि इसका जनतांत्रिककरण होना चाहिए जिससे हर नागरिक महसूस करें कि यह उनकी सुविधा के लिए है। सभी न्यायालय पूर्ण रूपेण इंटरनेट सुविधा युक्त एवं तकनीकी सुविधा युक्त न्यायिक प्रक्रिया हो जिससे जनमानस आसानी से अपने हित मैं स्वीकार करें और वे भी आसानी से समझ सके। इस तकनीक व्यवस्था के सही स्थापना हेतु राजनीतिक इच्छा एवं कार्यवाही दोनों ही निहायत आवश्यक है तभी जनता, अधिवक्ता एवं अन्य संबंधित व्यक्ति तकनीकी व्यवस्था को सुलभ एवं सस्ता के रूप में स्वीकार करेंगे एवं न्यायिक प्रक्रिया आसान हो सकेगी।

भोपाल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पी० के० शुक्ला, चाणक्य लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजय कुमार ने प्रश्न सत्र में भारतीय न्यायपालिका से संबंधित प्रश्न पूछे। श्री के० एम० वर्मा, अधिवक्ता झारखंड उच्च न्यायालय, प्रोफेसर उमेश प्रसाद, प्रोफेसर के० एन० यादव, प्रोफेसर प्रवीण कुमार, प्रोफेसर रमेश चौधरी, प्रोफेसर मृदुला कुमारी, प्रोफेसर विवेक कुमार, प्रोफेसर संगीता कुमारी, प्रोफेसर बैकुंठ राय, प्रोफेसर सलोनी प्रसाद, प्रोफेसर बिंदु सिंह, प्रोफेसर कीर्ति, प्रोफेसर हंसा गौतम, प्रोफेसर नवेंदु शेखर इत्यादि इस व्याख्यान श्रृंखला में शामिल थे।