विश्व स्तनपान सप्ताह खुला सम्पादकीय : स्तनपान केवल मॉ नहीं बल्कि परिवार, समाज और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी

गीता (बदला हुआ नाम) का जन्म उसके परिवार के लिए प्रसन्नता के साथ-साथ चिंता का विषय भी था। नालंदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (NMCH), पटना, के कोरोना वार्ड में जन्मी गीता की माँ गर्भावस्था के अंतिम चरण में कोरोना पॉजिटिव हो कर भर्ती थी। गीता का जन्म होते ही माँ और पूरा परिवार आशंकित था की नवजात को कोरोना ना हो जाये। माँ के दूध से संक्रमण का उन्हें सबसे ज़्यादा डर था। ऐसे में, उनकी मदद के लिए आगे आये वहां के डॉक्टर और नर्सों जिन्होंने उन्हें समझा-या कि कोरोना से पीड़ित माँ अपने बच्चे को स्तनपान करा सकती है, पर पूरी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए। उन्होंने नन्ही गीता को उसकी माँ का दूध एक्सप्रेस (निकाल) कर के, सैनिटाइज़ की हुई कटोरी चम्मच से पिलाया।

आज गीता पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और उसकी माँ को ये तसल्ली हैं की उसकी बीमारी की वजह से गीता माँ के दूध से वंचित नहीं रही। वह अच्छी तरह से जानती है की बच्चे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाने के लिए माँ के दूध से बेहतर और कुछ नहीं। माँ का दूध केवल शारीरिक विकास के साथ मस्तिष्क के विकास के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। और NMCH की प्रशिक्षित नर्सें की परामर्श (counselling) के बाद उसका पूरा परिवार, यहाँ तक कि उसके सास और ससुर भी समझ गए हैं की हर हाल में छह माह तक गीता को केवल माँ का ही दूध देना है।
यह एक बड़ी उपलब्धि है!
COVID-19 की वैश्विक महामारी में भी, बच्चों का स्तनपान जारी रख पाना एक बड़ी चुनौती है। पर NMCH जहाँ, कोरोना वायरस से लड़ने के लिए संघर्षरत है, वहीँ हर बच्चे को उसका नैसर्गिक अधिकार (माँ का दूध) दिलाने के लिए भी प्रयासरत है। बिहार में कुपोषण दूर करने के लिए Infant and Young Child Feeding (IYCF) प्रथाओं को सुदृढ़ करने के लिए राज्य स्तरीय रिसोर्स सेंटर है; हमें खुशी है की UNICEF (यूनिसेफ) इसमें बिहार सरकार को तकनीकी सहयोग दे रहा है।

स्तनपान की चुनैतियाँ

एक वैश्विक अध्ययन का अनुमान हैं, स्तनपान को बढ़ावा देने से 5 वर्ष से कम उम्र के विश्व के 820,000 से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

यह ख़ुशी की बात है की बिहार के शिशु मृत्यु दर में लगातार सुधार हो रहा है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (2018) के हालिया सर्वेक्षण में बिहार में शिशु मृत्यु दर 32 (प्रति हजार जीवित जन्मे बच्चों में) है। लेकिन राज्य में पोषण से संबंधित संकेतकों में सुधार करने की दिशा में अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, विशेष रूप से 5 साल से कम उम्र के बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिए.

Comprehensive National Nutrition Survey (CNNS 2016-18 ) के अनुसार भारत में 57% शिशुओं को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान मिलता है और बिहार में यह आंकड़ा 46 % है। भारत में 58 % बच्चों को छह माह तक सिर्फ माँ का दूध (exclusive breastfeeding) दिया जाता है और बिहार में यह आंकड़ा 62.7 % है।

ग़ौरतलब, है की CARE संस्था के द्वारा 2019 में किये गए परिवार सर्वेक्षण के अनुसार पहले एक महीने में 80% बच्चों को सिर्फ माँ का दूध दिया जाता है, लेकिन यह आंकड़ा 3-5 महीने के बच्चों में गिर कर 55% हो जाता है। यह देखने में आया है की सिर्फ माँ का दूध देने की बजा ये, 22% लोग जानवर का दूध, 22% लोग पानी, 7% लोग मिल्क-फार्मूला और 1% लोग शहद देतें हैं। यह अत्यंत चिंतनीय है क्योंकि इससे बच्चे स्तनपान के लाभ से वंचित रह जाते हैं और बीमारियों के संक्रमण की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है।

यह आंकड़े दिखाते है स्तनपान की निरंतरता बनाए रखने में अभी बहुत चुनौतियाँ हैं और परिवारों और माताओं में जागरूकता कमी है। हर कोई यह कहता तो है की माँ का दूध अम्रत के सामान है पर ज़रा सी कठिनाई होती है — जैसे माँ को हलकी सी बीमारी, या कहीं बाहर जाना हो, बच्चा रो रहा हो या बच्चा बीमार हो, तो हम तुरंत माँ का दूध देना बंद कर देते हैं।
कई बार तो माँ और परिवार के मन में स्तनपान से संबंधित पूर्वाग्रह और भ्रांतियों जैसे माँ के दूध से शिशु का पेट नहीं भरता, गर्मी के दिनों में बच्चे को प्यास लगती है आदि, के कारण स्तनपान नियमित रूप से नहीं कराया जाता है। जबकि स्तनपान के विज्ञान से यह स्पष्ट है की यह एक हार्मोन पर निर्भर होने वाली प्रक्रिया है जिसके लिए माँ को मानसिक रूप से प्रसन्न रहकर, कुशलता से शिशु को स्तनपान कराने से ही अधिक दूध बनने की क्रिया प्रारंभ होती है।

इसके अलावा बाहरी शिशु-खाद्य पदार्थों (डिब्बे का दूध) की आक्रामक एवं आकर्षक मार्केटिंग, के कारण परिवार के सदस्यों पर बोतल से दूध देने का दबाव होता है. यद्यपि भारत में शिशु दुग्ध पदार्थ विकल्प (IMS : Infant Milk Substitute) अधिनियम लागू है, जो शिशु-दूध फॉर्मूला को स्वास्थ्य सुविधाओं के अंदर और आस-पास में बेचने और बढ़ावा देने को दृढ़ता से प्रतिबंधित करता है, परन्तु इस कानून का कड़ा से पालन आवश्यक है। Breastfeeding Promotion Network of India (BPNI) के हाल ही के अध्ययन के अनुसार माँ के दूध के विकल्पों की भारत में बिक्री 2016 में कुल 26.9% थी और 2021 में अनुमानित 30.7% होगी।

माँ के दूध का कोई विकल्प नहीं

माता और पिता, समाज और नीति बनाने वालों को यह समझना चाहिए की स्तनपान या माँ के दूध का कोई विकल्प नहीं हैं। माँ का पहला दूध (खिर्सा, कोलोस्ट्रम) को बच्चे का पहला टीका-करण माना जाता है। यह बच्चे को रोग-प्रतिरोधक क्षमता का शास्त्र देता है जो उनके पूरे जीवन चक्र (life-cycle) को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन, इम्मुनोग्लोबिन जैसे रोगाणु नाशक तत्व होते हैं जो उन्हें पेट के कीड़े, कान के संक्रमण, निमोनिया और मूत्र-पथ के संक्रमण से बचाने में मदद करता है।
स्तनपान से बच्चें की बुधिमत्ता लब्धि (Intelligence Quotient) बढ़ाने का लाभ भी देता है तथा गैर संचारी रोगों (non-communicable diseases) को रोक देता है। स्तनपान धात्री माताओं के लिए भी लाभदायक है क्योंकि यह स्तन कैंसर और डिम्बग्रंथि के कैंसर की आशंका को कम करता है। स्‍तनपान से माँ व शिशु के बीच भावनात्‍मक रिश्ता भी कायम होता है।

ग़ौरतलब है की स्तनपान से परिवार और समुदाय को आर्थिक रूप से भी फायदा है; एक आकलन के अनुसार स्तनपान को बढ़ाने से विश्व को $302 बिलियन की सालाना अतिरिक्त आय उत्पन्न होती के जो विश्व की सकल राष्ट्रीय आय (GDP) का लगभग 0.5 प्रतिशत हैं।

स्तनपान प्रोत्साहन के लिए 1 से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह

स्तनपान प्रोत्साहन के लिए विश्व गठबंधन (WABA) के मार्गदर्शन में इस सप्ताह भारत सहित दुनिया भर के 120 से अधिक देश इसमें भागीदारी करते हैं। WABA का गठन 14 फरवरी 1991 को UNICEF, WHO जैसे विकास-भागीदारी संगठनों के साथ किया गया था। इसका लक्ष्य शिशु को स्तनपान की वैश्विक संस्कृति को फिर से स्थापित करना है और हर जगह स्तनपान के लिए सहायता प्रदान करना है। इस वर्ष विश्व स्तनपान सप्ताह का थीम है: “स्वस्थ् संसार के लिए स्तनपान का समर्थन करें – कोविड-19 की वैश्विक महामारी में स्तनपान की प्रक्रिया को मजबूत करें।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि नवजात एवं शिशुओं के खान-पान संबंधी सर्वोत्तम अभ्यास (IYCF) में सुधार से शिशु मृत्यु दर और बड़े स्तर पर कुपोषण की स्थिति कम हो सकती है, भारत और राज्य सरकारों ने बहुत सारे उप-क्रम किये हैं जिनमे पोषण अभियान जन आंदोलन, और माँ (MAA : Mothers Absolute Affection), प्रधानमंत्री मातृत्व वंदन योजना आदि शामिल हैं। इनके अंतर्गत व्यापक जन जागरूकता एवं स्वस्थ कार्यकर्ताओं द्वारा धात्री माता और परिवार को प्रत्यक्ष परामर्श (counselling) के माध्यम से स्तनपान को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।

यह सराहनीय प्रयास हैं, पर इनके क्रियान्वयन की नियमित अनुश्रवण और गुणवत्ता बढ़ाने की ज़रुरत है। मौजूदा पोषण अभियान के अंतर्गत समुदाय-आधारित गतिविधियों जैसे आरोग्य दिवस, अन्नप्राशन दिवस, गोद-भराई, वृद्धि निगरानी के दौरान स्तनपान पर समूह और व्यक्तिगत परामर्श के लिए सबसे अच्छा उपयोग किया जा सकता है।

स्तनपान परिवार, समाज और सरकार की सामूहिक ज़िम्मेदारी

हमें यह बहुत स्पष्ट रूप से समझना होगा कि स्तनपान केवल माँ की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह परिवार, समाज और सरकारी निकायों की सामूहिक और नैतिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। ऐसे में सभी डॉक्टर, नर्सें, परिवार जन, समाज एम्प्लॉयर्स व सरकार का उत्तरदायित्व बनता है की वे माँ को अपने बच्चे के लिए स्तनपान करने में सहयोग करें। माँ को घर की ज़िम्मेदारी व काम से कुछ आराम दें, बाजार में, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, माल्स में, ब्रेस्टफीडिंग कार्नर बनाए ताकि किसी माँ को प्राइवेसी के अभाव में बोतल से दूध न देना पड़े।

काम काज की जगह पर बच्चों को लाने की सुविधा मिले, मैटरनिटी लीव के साथ साथ पैटर्निटी लीव भी मिले ताकि पिता बच्चे के पालन पोषण में अपना योगदान दे सकें। और भी अन्य कई तरह से हम एक माँ को यह आत्मविश्वास दे सकते है की सफलता से स्तनपान कराने के प्रयास में हम उसके साथ है। डॉक्टर को भी बिना कारण स्तनपान रोकने की सलाह नहीं देनी चाहिए बल्कि माँ को स्तनपान के लिए प्रेरित करना चाहिए।
हमे माँ और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान को एक जन आंदोलन बनाना है। यह सिर्फ एक हफ्ते, या एक माह का आंदोलन नहीं, बल्कि साल के तीन सौ पैँसठ दिनों तक हमे यह आन्दोलन करना है, जिससे हर बच्चे को, चाहे वह बेटी हो या बेटा, माँ के दूध का अधिकार और पूरा लाभ मिल पाए और एक स्वस्थ, सुपोषित, समाज का निर्माण हो।

असदुर रहमान, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ.बिहार
अतिरिक्त अंक

  • बेटी हो या बेटा, माँ का दूध हर शिशु का अधिकार है- जन्म के प्रथम घंटे में यथाशीघ्र; जन्म से प्रथम छह माह तक सिर्फ माँ का दूध
  • प्रथम घंटे में यथाशीघ्र स्तनपान के साथ जीवन का शुभारम्भ करें और शिशु को उसका प्राकृतिक अधिकार दें।
  • जन्म से प्रथम छह माह तक सिर्फ माँ का दूध इसके अतिरिक्त कोई अन्य दूध, खाद्य पदार्थ, यहाँ तक कि पानी भी नहीं पिलाना चाहिए।
  • 6 माह पूर्ण होते ही शिशु को माँ के दूध के साथ–साथ घर पर बना हुआ अर्द्धठोस आहार देने से शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास तेजी से होता है।

माँ कोरोना से संक्रमित/संदिग्ध है तो भी स्तनपान जारी रख सकती है

कोविड-19 के परिदृश्य में, अब तक करोना से संक्रमित/संदिग्ध माँ के दूध में वायरस की पुष्टि नहीं हुई है, इसलिए ऐसा कहा जा सकता है, की यदि कोई माँ कोरोना से संक्रमित/संदिग्ध है तो भी स्तनपान जारी रख सकती है या स्तन से दूध निकल कर बच्चे को पिला सकती है।
स्तनपान कराते समय माँ को उचित स्वच्छता उपायों को अपनाना चाहिए। यदि चिकित्सीय मास्क उपलब्ध हो तो उसे पहनना चाहिए अथवा अन्य मास्क का भी उपयोग किया जा सकता है। इससे यह लाभ होगा की माँ अगर ख़ासे, छीकें भी तो उसकी बूँदें शिशु पर पड़ने की संभावना कम होगी। स्तनपान से कई लाभ हैं जो, करोना से जुड़े संभावित संक्रमण और बीमारी के जोखिमों को काफी हद तक कम करता है।