भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, गंगा भूमि प्रादेशिक केंद्र पटना में वेटलैंड्स ऑफ गंगेटिक पलेंस में राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन, वक्ताओं ने कहा-वेटलैंड्स को बचाना सबसे जरूरी

पटना के भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, गंगा भूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना में वेटलैंड्स ऑफ गंगेटिक प्लेन्स : स्टैटस एवं कंजर्वेशन चैलेंजेज विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गयाI इस वेबिनार में बोलते हुए भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, कोलकाता के निदेशक डॉ. कैलाश चंद्र ने कहा कि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों के द्वारा वेटलैंड्स ऑफ गंगेटिक पलेंस के साथ साथ समुद्री फौना के बारे में अध्ययन चल रहा है, साथ ही इस सन्दर्भ में हमारे विभाग के द्वारा कई चल रहे शोध के साथ शोध पत्र प्रकाशित किए जा चुके है। उन्होंने गंगेटिक पलेंस के जंतुओं के वारे में चर्चा करते हुए कहा कि इस क्षेत्र का महत्व इस लिये भी बढ़ जाता है कि कशेरुकी जंतुओं की लगभग 50-60 प्रतिशत आबादी इन क्षेत्रों से रिकोर्ड किये गए हैं I उन्होंने बिहार के मखाना उत्पाद की चर्चा करते हुए कहा कि यह सभी लोगों का प्यारा खाद्य पदार्थ है जो कि – वेटलैंड्स का प्रोडक्ट है।


उन्होंने बिहार के विक्रमशिला गंगेतिक डोल्फिन अभ्यारण्य के वारे में चर्चा करते हूय कहा कि इस बह्यारान्य से अलाग्बहाग 15-16 टर्टल कि प्रजियाँ एवं सैकड़ों पक्षियों की प्रजातियों का रिकोर्ड मिला है जो बहुत ही अच्छी अधिवास की ओर इंगित करता है और ये सभी थ्रिटेन्द प्रजाति से आते है। देश के 10 बाइओज्यिग्रफि जोन जो कि ट्रांसहिलालाया से लेकर पलेंस है कि चर्चा करते हुए कहा कि ये सभी संरक्षित क्ष्रेत्र जंतुओं के लिए काफी उचित अधिवास है जिसमें वेटलैंड का भूमिका बहुत ज्यादा हो जाती है । उन्होंने इन क्षेत्रों के जंतुओं की उपस्थिति DNA के बेसिस पर अध्ययन करते हुए कहा कि इन क्षेत्रों से अब सिर्फ जंतुओं के अधिवास से पानी का सैम्पल लिया जाता है उससे जंतुओं कि प्रजाति की उपलब्धता का पता किया जा रहा है जो आज के विज्ञान की बहुत बड़ी उपलब्ध है।
नेशनल वेबिनार का संचालन करते हुए भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, गंगा भूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रभारी अधिकारी डॉ. गोपाल शर्मा में कहा कि जिस तरह से जंगलों को हम इस पृथ्वी का फेफड़ा मानते हैं जो शुद्ध हवा देती है उसी तरह वेटलैंड्स भी पृथ्वी का किडनी है जो प्राकृतिक जल को फिल्टर कर के भूगर्भ जल के लेवल को बढाता है। उन्होंने गांगेय क्षेत्रों के वेटलैंड्स की चर्चा करते हुए कहा कि लोगों के द्वारा इन वेटलैंड्स का दोहन बड़े पैमाने पर हुआ है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण जल कि कमी एवं लोगों कि अदुर्दार्शिता के कारण इन वेटलैंड्स को बचाने में अब सरकार के साथ आम लोगों को भी काफी दिक्कत का सामना करना पड रहा है।

समय रहते सभी को जागरूक होने की जरूरत

डॉ. रितेश कुमार, निदेशक, वेटलैंड्स इंटरनेशनल, साउथ एशिया नई दिल्ली ने गंगेटिक प्लेन्स के बदलते जलवायु पर बोलते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि सबलोग जागरूक हों समय निकल जाने पर कुछ नहीं बचा पायेंगे।उन्होंने जलवायु परिवर्तन एवं वेटलैंड्स पर प्रभाव पर चर्चा करते जुए कहा कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार के वेटलैंड्स पर जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा प्रभाव पडा है जिसे हम सामने से देख सकते हैं उन्होंने कहा कि इन वेटलैंड्स के क्षेत्रफल अपने पुराने एरिया से कम होते जा रहे है जो कि चिंता का विषय है उन्होंने वेत्लैंड्स के वारे में कहा कि 17500 वेत्लैंड्स ऐसे है जो 2.25 हेक्टेयर के हैं, लेकिन 130 वेत्लैंड्स ऐसे भी है जो 100 हेक्टेयर से कम है जो कि नदियों के आचरण पर निर्भर करते हैं। गांगेय क्षेत्रों के 14% प्राकृतिक वेटलैंड्स समाप्त हो गए है लेकिन मानव जनित वेटलैंड्स ज्यादा बचे हुए हैं क्योंकि उनपर लोगों का ध्यान अधिक जाता है गंगेटिक प्लेन्स में काफी तेजी से प्राकृतिक वेटलैंड्स कम होते जा रहे हैं जिनके पीछे सॉलिड वेस्ट डंपिंग का होना, सस्पेंडेड लोड का ज्यादा होना हो सकता है। जलवायु परिवर्तन की चर्चा करते हुए कि वेटलैंड्स में जल की मात्रा न्युत्रियेंट इनरिचमेंट , स्पेसिज इन्भेजन, सॉलिड वेट डिस्पोजल मुख्य कारण हो सकता है। कोसी क्षेत्रों की चर्चा करते हुए कहा कि कोसी नदी में भी जल कि मात्रा कम हुई है जो जलवायु परिवर्तन का कारण हो सकता है जिसमें पहाड़ों पर वर्फ कि मात्रा का कम होना भी एक है। गंगेटिक प्लेन्स के ग्राउंड वाटर कि चर्चा करते हुए कहा कि विश्व में सवसे ज्यादा गंगेटिक प्लेन्स में ग्राउंडवाटर का उपयोग होता है। वेटलैंड्स में जल होंगे तथा मैक्रोफैट्स होंगे तभी जंतुओं का जीवन ठीक-ठाक रहेगा। पक्षियों का अधिवास एवं उनका जीवन भी जल कि मात्रा पर ही निर्भर करता है । मछलियों में इंडियन मेजर कार्प में सबसे ज्यादा कमी आई है। ग्रीनहॉउस गैस भी इनके लिए उतरदायी है। इस तरह हम कह सकते हैं कि अगर हम इन वेटलैंड्स बचाकर जलवायु परिवर्तन को कम कर सकते हैं।

वेटलैंड का एक बड़ा हिस्सा बिहार और यूपी में

वहीं वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के उप निदेशक एवं स्पेसिज रिकवरी विंग के हेड डॉ. समीर कुमार सिन्हा ने कहा कि वेटलैंड का एक बड़ा हिस्सा बिहार और यूपी में है। यह कई जीवों का निवास स्थान है। बिहार का गैंगेटिक वेटलैंड में कई वैसे जीव पाये जाते हैं, जो मानव सभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं। सारस नामक पक्षी भी इनमे से एक है। जरूरत वेटलैंड्स को बचाने की है। उन्होंने सारस क्रेन को गांगेय क्षेत्रों के जलीय जीवों के साथ जोड़कर बहुत ही प्रभावित व्याख्यान दिया

वेबिनार में बोलते हुए प्रो। (डॉ.) विद्या नाथ झा ने एक्वेटिक फायटोडायवर्सिटी की उपयोगिता पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होने बिहार में मखाना की खेती और इसमे जलीय जीवों की सहभागिता के बारे में चर्चा की।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन गंगा समभूमि प्रादेशिक केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. राहुल जोशी ने किया। इस वेबिनार में लगभग 350 लोगों ने अपनी सहभागिता दी, तथा सैकड़ों की संख्या में लोग यूट्यूब पर जुड़े रहे।
इस वेबिनार में डॉ. नवीन कुमार, बिहार राज्य प्रदुषण नियंत्रण पर्षद,  नवीन कुमार, पूर्व महाप्रबंधक, बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम, डा. एन.के.दास, डॉ. सैयद सबीह हसन, डॉ. अनुपमा कुमारी, डॉ. नीतू सिंह  प्रीती कुमारी, सलोनी कुमारी ,आर.के.शर्मा, चम्बल सैन्क्च्युँरी एवं सूदन सहाय आदि ने भाग लिया।