एक संसदीय समिति भारत भर की पाठ्यपुस्तकों में ‘अनैतिहासिक संदर्भों (अनहिस्टॉरिकल रेफरेन्सेस)’ की पहचान करने और ‘भारतीय इतिहास का अनुपातहीन प्रतिनिधित्व (डिस अप्रोप्रिएट रीप्रेजेंटेशन)’ को ठीक करने पर काम कर रही है। भाजपा सांसद और संसद में शिक्षा मंत्रालय समिति के अध्यक्ष, विनय सहस्रबुद्धे ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया था कि भारत में स्कूली पाठ्य पुस्तकों में देश को सबसे पहले रखना चाहिए। इसके साथ ही 1975 में हुए आपातकाल और 1998 में हुए पोखरण परमाणु परीक्षणों को भी भारतीय शिक्षा में विधिवत प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
15 जुलाई तक भेजने होंगे सुझाव
विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति अब इस मुद्दे पर हितधारकों और आम लोगों से सुझाव मांग रही है।
विषय में रुचि रखने वाले शिक्षकों, छात्रों और अन्य लोगों को 30 जून तक अपने सुझाव भेजने के लिए कहा गया है। हालांकि, कोविड -19 दूसरी लहर के कारण, कुछ विशेषज्ञ अपने सुझाव देने में असमर्थ थे। इसे देखते हुए हाउस पैनल ने सुझाव देने की समय सीमा बढ़ाकर 15 जुलाई करने का फैसला किया है।
इस वजह से बढ़ाई समय सीमा
इन बदलावों का किया था जिक्र राज्य सभा सचिवालय (समिति अनुभाग) द्वारा पहले जारी एक नोट में यह उल्लेख किया गया था कि स्कूली पाठ्य पुस्तकों में से हमारे राष्ट्रीय नायकों के बारे में अनैतिहासिक तथ्यों और विकृतियों के संदर्भों को हटाना”, “भारतीय इतिहास की सभी अवधियों के समान या आनुपातिक संदर्भ” सुनिश्चित करना और “गार्गी, मैत्रेयी या शासक जैसे झांसी की रानी, राम चन्नम्मा, चांद बीबी और ज़लकारी बाई सहित महान ऐतिहासिक महिला नायकों की भूमिका पर प्रकाश डालना शामिल है।
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