भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने स्पेशल ईंट तैयार की है, जिससे भारत अब चांद पर भी मकान बना सकेगा।
आईआईएससी ने कहा है कि ईंट जैसी इस संरचना को चांद पर पाई जाने वाली मिट्टी से बनाया गया है। इस विशेष प्रकार की ईंट को बनाने के लिए बैक्टीरिया और ग्वार फलियों का उपयोग किया गया है। IISc की तरफ से कहा गया है कि “इन अंतरिक्ष ईंटों का उपयोग चंद्रमा की सतह पर रहने के लिए निर्माण काम में किया जाएगा।
इस उपलब्धि को लेकर आईआईएससी, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर आलोक कुमार ने कहा,
यह वास्तव में रोमांचक है, क्योंकि यह दो अलग-अलग क्षेत्रों जीव विज्ञान और मैकेनिकल इंजीनियरिंग को एक साथ लाता है,
उन्होंने कहा अंतरिक्ष की खोज में पिछली शताब्दी में तेजी आई है।
उन्होंने कहा, पृथ्वी पर लगातार तेजी से घटते संसाधनों की वजह से वैज्ञानिकों ने केवल चंद्रमा और संभवतः अन्य ग्रहों में रहने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। बयान के मुताबिक, एक पाउंड की सामग्री को बाहरी अंतरिक्ष में भेजने की लागत करीब 7.5 लाख रुपये है।
आईआईएससी और इसरो टीम द्वारा विकसित प्रक्रिया में यूरिया का उपयोग करती है जिसे चंद्रमा की सतह पर निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में मानव मूत्र और चांद की मिट्टी से प्राप्त किया जा सकता है। इससे खर्च में कटौती होती है।
इस प्रक्रिया में कार्बन फुटप्रिंट भी कम है क्योंकि यह सीमेंट की बजाय ग्वार गम का उपयोग करता है। यह पृथ्वी पर टिकाऊ ईंट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ सूक्ष्म जीव चयापचय के माध्यम से खनिजों का उत्पादन कर सकते हैं।
ऐसा ही एक जीवाणु, जिसे ‘सस्पोसारसीना पेस्टुरि’ कहा जाता है, एक चयापचय के माध्यम से कैल्शियम कार्बोनेट क्रिस्टल का उत्पादन करता है जिसे यूरोलिटिक चक्र कहा जाता है। यह यूरिया और कैल्शियम का उपयोग करके इन क्रिस्टल को मार्ग के बायप्रोडक्ट्स बनाता है।
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