क्या आप जानते हैं नए साल के पीछे का रहस्य?

नए साल का उत्सव पूरे विश्व में अलग अलग स्थानों पर अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है। अलग अलग संप्रदाय के लोग अलग अलग प्रकार से इस समारोह को मानते हैं। इस नव वर्ष उत्सव का आयोजन 4000 वर्ष पहले ही बेबीलोन में होता था। तब इस नए वर्ष को 21 मार्च को मनाया जाता था। जो वसंत के आने की तिथि भी मानी जाती है।
रोम के शासक जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वे वर्ष जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की। उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष के रूप में मनाया गया।ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष यानी 46 ईस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था।
नव वर्ष को लेकर कई मान्यताएं हैं-
हिब्रू मान्यता के अनुसार भगवान को विश्व बनाने में सात दिन लगे थे। सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 4 सितंबर से 4 अक्टूबर के बीच आता है।
हिंदुओ का नया साल चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा पर हर साल आरंभ होता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में नया साल अलग अलग तारीखों को मनाया जाता है। प्रायः यह तिथि मार्च और अप्रैल महीने में पड़ती है।

पंजाब में नया साल वैशाखी के नाम से 13 अप्रैल को मनाया जाता है।
तेलगु नया साल मार्च अप्रैल के बीच आता है।
आंध्र प्रदेश में इसे उगादी नाम से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में इसे चैत्र महीने के पहले दिन मनाते है।
केरल में 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है।
तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से जानते है।
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के नाम से।

गुजराती नया साल दीपावली को मनाया जाता है। इसी दिन जैन धर्म का भी नव वर्ष होता है।
इस्लामिक कैलेंडर की माने तो उनका नया साल मुहर्रम होता है।