इस बिहार को गढ़ने में नीतीश ने अपनी आत्मा लगा दी, प्याज फेंकने वालों को यह सोचना जरूरी था

nitish kumar

बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण का चुनाव प्रचार भी थम गया है। तीनों दौर के चुनाव प्रचार में सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। वहीं कई वैसे वाकये भी हुए जो न सिर्फ चुनावी सियासत, बल्कि वैश्विक पटल पर बिहार को बदनाम कर दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मधुबनी की जनसभा में उनपर सभा में मौजूद कुछ असामाजिक तत्वों ने प्याज फेंक विरोध जताया। इस वाक्ये के हर ओर आलोचना हो रही है। किसी भी सभा में विरोध का ये तरीका कतई जायज नहीं माना जा सकता। ये ठीक है कि लोकतंत्र में लोगों को विरोध करने का हक है, पर इस विरोध का तरीका भी लोकतांत्रिक होना चाहिए।

नीतीश ने बिहार को ब्रांड बनाया

सभा में प्याज फेंकने वालों को यह भी याद रखना चाहिए कि नीतीश कुमार ने लंबे वक्त तक बिहार की छवि को मजबूत करने और दुनिया भर में बांड बिहार की नयी पहचान गढ़कर गाली के तौरपर प्रयुक्त होने वाले ‘बिहारी’ शब्द को एक मुकम्मल पहचान दिलायी।
श्रीकुमार ने न सिर्फ बिहार की गौरवशाली इतिहास से दुनिया को परिचित कराया बल्कि उसकी ब्रांडिंग भी की। चाहे दुनिया को ‘शून्य’ देने वाले आर्यभट्ट हों या फिर अर्थशास्त्र के ज्ञाता कौटिल्य। सभी से बिहार की माटी से हीं आते हैं।

विकास की नयी लकीर खीची नीतीश ने

पन्द्रह साल के लालू के शासनकाल के बाद बिहार की बिखरी पड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाना नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क जैसे मूलभूत संसाधन खड्ढ़े में थे। अर्थव्यवस्था भी चौपट थी। साथ हीं लोगों के मन में बिहार गौरव का सम्मान भी जगाना था। नीतीश कुमार ने अपनी बारीक दृष्टि से इनसब पर न सिर्फ कार्य किया बल्कि पहले हीं पांच सालों में बिहार की फिजा बदल गयी। देश दुनिया में बिहार के सम्मान के कार्यक्रम किये गये। जिस दिन व्यवस्था सुचारू की गयी,सड़कों का सुदृढ़ीकरण हुआ। शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन आये। सरकारी अस्पताल में जाने से डरने वाले लोग अस्पतालों ने इलाज के लिए भीड़ लगाने लगे। बिहार राज्यगीत का निर्माण हुआ। अब लोग बिहारी कहलवाने में शर्माते नहीं, बल्कि गर्व करते हैं। कहीं न कहीं इसके पीछे नीतीश कुमार का एक बड़ा योगदान रहा है।