“महात्मा गाँधी और चम्पारण सत्याग्रह” विषय पर वेब-गोष्ठी का आयोजन, वक्ताओं ने कहा- चंपारण के रैयतों ने महात्मा गाँधी को मुक्तिदाता के रूप में देखा

रीजनल आउटरीच ब्यूरो एवं पत्र सूचना कार्यालय, पटना, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा “महात्मा गाँधी और चम्पारण सत्याग्रह” विषय पर वेब-गोष्ठी का आयोजन किया गया। वेब गोष्ठी को संबोधित करते हुए आरओबी एवं पीआईबी, पटना के अपर महानिदेशक एस. के. मालवीय ने कहा कि महात्मा गाँधी ने बिहार आने से पूर्व पूरे देश के मानस को समझ लिया था। बिहार के चम्पारण से ही महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह शुरू किया था. सत्याग्रह ही उनका मूल चिंतन था. उन्हें बिहार लाने के लिए बिहार के किसान राजकुमार शुक्ल ने ठान लिया था, और बहुत मशक्कत करने बाद 1917 में महात्मा गाँधी बिहार आये. चम्पारण की धरती ने ही महात्मा को स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख नेता बना दिया. बिहार में महात्मा गांधी बार-बार आते रहे और उन्हें अपार जनसमर्थन मिलता रहा। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को आम जनता से जोड़ा जिससे इसकी सफलता सुनिश्चित हुई।

महात्मा गांधी ने चंपारण पहुँच कर आंदोलन का नेतृत्व किया

तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. योगेन्द्र महतो ने चंपारण सत्याग्रह के समय की परिस्थितियों की चर्चा करते हुए कहा कि निलहे गोरों द्वारा स्थानीय रैयतों, जो कि मूलतः खेत-मज़दूर थे, पर निरन्तर अत्याचार किया जा रहा था। तिनकठिया तथा पंचकठिया प्रथाओं के नाम पर रैयतों को नील की खेती करने के लिए विवश किया जाता था। नील पर कर के साथ-साथ चालीस अन्य प्रकार के कर लगाए गए थे, जिससे किसान त्रस्त थे। रैयतों द्वारा प्रारंभ में अनेक आंदोलन हुए,जो कि प्रायः असफल रहे। ऐसे में महात्मा गांधी ने चंपारण पहुँच कर किसानों को जागरूक करते हुए आंदोलन का नेतृत्व किया। रैयतों ने महात्मा गांधी को मुक्तिदाता के रूप में देखा।

गांधी की पुकार पर सम्पूर्ण चंपारण क्षेत्र उद्वेलित हो उठा

अतिथि वक्ता के रूप में बी0 एल0 दास, परियोजना पदाधिकारी, बिहार विधान परिषद ने अपने शोध के आधार पर चंपारण सत्याग्रह के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उनके अनुसार रैयतों के बीच जागृति लाने में महात्मा गांधी की प्रमुख भूमिका रही थी। नील की खेती पर मालगुजारी देने से रैयतों ने इंकार कर विद्रोह कर दिया। महात्मा गांधी की पुकार पर सम्पूर्ण चंपारण क्षेत्र उद्वेलित हो उठा। रैयतों में निलहे अंग्रेजों के प्रति घृणा और विद्रोह की भावना भर उठी थी। महात्मा गांधी जब चंपारण पहुंचे तब उनपर मुकदमा कायम कर क्षेत्र को छोड़ने का आदेश पारित किया गया, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया। चंपारण प्रवास के दौरान महात्मा गांधी ने साम्प्रदायिक एकता पर बल दिया तथा बताया कि असहयोग का अर्थ भय नहीं बल्कि सत्य के मार्ग पर अडिग रहना है।

वेब गोष्ठी का संचालन कर रहे पीआईबी के सहायक निदेशक संजय कुमार ने कहा कि चंपारण आंदोलन आम जनता का आंदोलन था जिसने भावी पीढ़ियों को प्रेरित किया है।

पुष्य मित्र ने चंपारण आंदोलन को बिहार का गौरव बताया

वेबिनार में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र ने चंपारण आंदोलन को बिहार का गौरव बताया। यह देश का प्रथम किसान आंदोलन होने के साथ-साथ नागरिक सामाजिक आंदोलन भी था। राजकुमार शुक्ल द्वारा लगातार अथक प्रयास करते हुए महात्मा गांधी को चंपारण बुलाया गया। अन्ततः राजकुमार शुक्ल के साथ ही पटना से मुजफ्फरपुर होते हुए महात्मा गांधी 15 अप्रैल 1917 को रैयतों की शिकायत सुनने और उनकी समस्याओं को समझने गांधीजी चंपारण पहुंचे। उल्लेखनीय बात यह है कि उसके 10 साल पूर्व ही शेख गुलाब के नेतृत्व में रैयतों ने आंदोलन के माध्यम से नील की खेती न करने का निर्णय लिया था। उनके अनुसार चंपारण आंदोलन से सभी देशवासियों को आज भी प्रेरणा मिलती है।

गोष्ठी में महात्मा गाँधी और चम्पारण सत्याग्रह पर एक वीडियो रिपोर्ट भी दिखाई गई थी। वेब गोष्ठी में आरओबी, पटना के निदेशक विजय कुमार, पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार सहित सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विभिन्न विभागों के लोग शामिल हुए। धन्यवाद ज्ञापन आरओबी के सहायक निदेशक एन.एन.झा ने किया।