गौरैया बचाओ, पर्यावरण बचाओ तथा पर्यावरण योद्धा, पटना की ओर से आज “गौरैया और पर्यावरण” विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस आनलाइन परिचर्चा में देश के जाने-माने पर्यावरणविद तथा गौरैया संरक्षक शामिल हुए

परिचर्चा को संबोधित करते हुए स्पैरोमैन से विख्यात जगत कीनखाबवाला ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए इंसानों को अपनी संस्कृति, सोच और शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन लाना होगा। इंसानों ने अपनी जीवन शैली से पर्यावरण और गौरैया दोनों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। इंसानों ने फूड चेन की पूरी श्रृंखला को प्रभावित किया है, जिससे पर्यावरण पूरी तरह असंतुलित हो गई है। उन्होंने कहा कि ध्रुवों पर बर्फ के बड़े पहाड़ों का टूटना, वैश्विक तापन का बढ़ना, तौकाते या यास जैसे तूफानों व चक्रवातओं का आना, यह सब प्राकृतिक असंतुलन की वजह से ही हो रहा है। हमें ग्लोबल वार्मिंग को वैश्विक तापन के रूप में नहीं बल्कि “ग्लोबल वार्निंग” यानी कि “वैश्विक चेतावनी” के रूप में देखना चाहिए। गौरैया संरक्षण के विषय पर बोलते हुए कीनखाबवाला ने कहा कि जंगलों की कटाई कर कंक्रीट के जंगल के निर्माण ने गौरैया को उसके प्राकृतिक आवास से छिन्न–भिन्न कर दिया है। गौरैया कोई माइग्रेटरी बर्ड नहीं है, जो एक स्थान से उड़कर कहीं दूसरी जगह चली जाए। यह आपके और हमारे बीच रहने वाला पक्षी है। उन्होंने कहा कि गौरैया अपना घोंसला खुद नहीं बना सकती है, इसलिए हम सभी को गौरैया संरक्षण के लिए दाना-पानी के साथ-साथ घोंसला भी रखना चाहिए। अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वे देश-विदेश में करीब डेढ़ लाख से अधिक घोसले लोगों को उपलब्ध करवाए हैं, जिसमें गौरैया आकर रहती है। साथ ही वे वृक्षारोपण का कार्य भी बखूबी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारा दायित्व बनता है कि हम चार नहीं बल्कि 14 पेड़ लगाएं। यह पेड़ केवल ऑक्सीजन के लिए ही नहीं बल्कि भविष्य की हमारी पीढ़ियों के लिए एक ‘सस्टेनेबल एनवायरनमेंट’ का निर्माण करेगा। उन्होंने कहा कि बाहर में हम बड़े-बड़े पेड़ों की कटाई कर रहे हैं और महंगे दामों पर ऑक्सीजन छोड़ने वाले छोटे-छोटे पौधे घरों में रख रहे हैं। यह एक अजीब बात है। हम एक गलत परंपरा बना रहे हैं। हम बाहर के बड़े पेड़ों को काटकर घर में छोटे पौधे लगाकर पर्यावरण में हो रही क्षति की भरपाई नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम समय रहते नहीं चेते तो वह वक्त दूर नहीं है कि जब हमें बंद बोतल पानी की तरह ऑक्सीजन भी अपने हाथ में लेकर चलना होगा।

इंसान दो प्रकार के पर्यावरण में जीता है-

worms eyeview of green trees
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परिचर्चा को संबोधित करते हुए प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) पटना के निदेशक एवं जाने-माने चिंतक दिनेश कुमार ने कहा कि इंसान दो प्रकार के पर्यावरण में जीता है- पहला शरीर के अंदर का पर्यावरण और दूसरा शरीर के बाहर का पर्यावरण। जितना अंदर के पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित रखने की आवश्यकता है, उतना ही बाहरी पर्यावरण को भी संतुलित रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इंसान किस प्रकार पर्यावरण से अंतरक्रिया करता है, पर्यावरण इंसानों के लिए कितना आवश्यक है, इसे बखूबी समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अगर मैं गौरैया की नजर से इंसानों को देखूं तो इंसान एक आइडेंटिटी क्राइसिस (पहचान के संकट) में जी रहा है। इंसान अपने आपको यह दिखाने में लगा हुआ है कि वह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। जबकि ऐसा है नहीं। प्रकृति से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं। इंसानों ने अपने आसपास एक कृत्रिम पर्यावरण बना दिया है। प्राकृतिक वातावरण से इंसानों का परस्पर क्रिया कम से कम होता जा रहा है और ना ही वह किसी भी प्रकार से सस्टेनेबल एनवायरनमेंट का निर्माण कर रहा है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों सहित अन्य जीवों का काम केवल अपनी भूमिका को निभाते रहना है। लेकिन मनुष्यों के साथ दिक्कत यह है कि वह प्राकृतिक चीजों के रूपांतरण में लगा हुआ है और जिससे प्रकृति को नुकसान हो रहा है। हमें प्रकृति से बिल्कुल भी छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। हमें नेचर ऑफ लॉ यानी प्रकृति के नियमों के हिसाब से ही चलना चाहिए। GOD को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि GOD का अर्थ – जी-जनरेटर यानी निर्माणकर्ता, ओ-ऑपरेटर यानी संचालक एवं डी-डिस्ट्रॉयर यानी विध्वंसक है। इंसानों को इन तीनों चीजों से खुद को बनने से रोकना चाहिए। इंसानों को केवल अपनी प्राकृतिक भूमिका निभानी चाहिए। जैसे अन्य जीव करते हैं।

वातावरण के प्रति मनुष्यों की बौद्धिकता हो गई खत्म – पूरी दुनिया ‘अर्थ’ के पीछे भाग रही है

photo of oil rig platform
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परिचर्चा को संबोधित करते हुए होम्योपैथी चिकित्सक एवं पीपल नीम तुलसी अभियान, पटना के संस्थापक डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में देखे तो वातावरण के प्रति मनुष्यों की बौद्धिकता खत्म हो गई है। लोग आधुनिकता के पीछे तेजी से भाग रहे हैं। विकास के नाम पर जंगलों का सफाया किया जा रहा है। हम केवल हम में ही मशगूल हैं। जबकि मनुष्य को यह सोचना चाहिए कि पेड़, पक्षी पशु ये सभी हमारे परिवार के ही सदस्य हैं। इसके बिना हमारा परिवार अपूर्ण। उन्होंने कहा कि वातावरण के प्रति लोगों में बौद्धिकता का निर्माण करना होगा। राष्ट्रीय वृक्ष के साथ-साथ देशभर के सभी राजकीय वृक्ष की बड़ी संख्या में वृक्षारोपण करना होगा। बर, पीपल, पाकड़, गूलर सरीखे पौराणिक वृक्षों को अधिक से अधिक लगाने की आवश्यकता है। यह वृक्ष पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। उन्होंने यह भी कहा कि वृक्षों को लगाने के लिए राष्ट्रीय योजना बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि गौरैया हमारा मित्र है, पर्यावरण का एक संरक्षक के रूप में कार्य करता है, इस बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया ‘अर्थ’ के पीछे भाग रही है जबकि अर्थ से कुछ भी होना जाना नहीं है। पर्यावरण आवरण को ठीक करने के लिए घर-घर में अलख जगाने की आवश्यकता है।

इंसानों की तरह पक्षियों के लिए भी पर्यावरण बहुत मायने रखता है

परिचर्चा के संयोजक,गौरैया संरक्षण सह-पर्यावरण मुद्दे पर लिखने वाले प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के सहायक निदेशक संजय कुमार ने कहा कि जिस तरह से इंसानों ने लिए पर्यावरण बहुत मायने रखता है, उसी तरह से पक्षियों के लिए भी के लिए आवश्यक है। गौरैया के लिए बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ते पर्यावरण ने पलायन के लिए मजबूर कर दिया। गांवों से शहरों में बनते कंक्रीट के जंगल ने गौरैया से उसका आशियाना छीन लिया है। वहीं कीटनाशकों का प्रयोग से उसके आहार पर आफत आ गई है। ऐसे में इंसान के साथ-साथ गौरैया और पर्यावरण को भी बचाना होगा।परिचर्चा के दौरान लखनऊ की लेखिका जिज्ञासा सिंह की रचना मेरी प्यारी गौरैया का पाठ किया गया।

flock of yellow baby ducks in grass
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गौरैया एवं पर्यावरण विषय पर आयोजित परिचर्चा में धन्यवाद ज्ञापन भूगोल विभाग, पटना विश्वविद्यालय के निशांत रंजन ने किया।परिचर्चा में पवन कुमार, संजीत कुमार, कैलाश दहिया,अमित पांडेय, सहित बड़ी संख्या छात्र जुड़े थे।