मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र से नरेंद्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की जिद में वह महागठबंधन के ‘विश्वास’ की बलि भी नहीं देना चाहते हैं और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का भी हाथ कस कर पकड़ना चाह रहे..इस कारणजदयू से कोई डिप्टी सीएम देकर तेजस्वी यादव को नाखुश नही करना चाहते…

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगे देख रहे हैं। केंद्र से नरेंद्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की जिद में वह महागठबंधन के ‘विश्वास’ की बलि भी नहीं देना चाहते हैं और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का भी हाथ कस कर पकड़ना चाह रहे हैं। इस अभियान में एक बार फिर उपेंद्र कुशवाहा के हसीन सपनों की कब्र बन गई। नीतीश ने ऐसी किसी बात को मजाक की तरह लिया। क्योंकि वह इस समय किसी भी हालत में जदयू से कोई डिप्टी सीएम देकर तेजस्वी यादव को कमजोर नहीं कर सकते। उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार की बात की, जो राजद कोटे के विधि मंत्री के हटाए जाने के बाद से ही तय है। फिर राजद के कृषि मंत्री बड़बोलेपन से बाहर किए गए, इसलिए भी विस्तार तो होना ही है।

2020 के विधानसभा चुनाव और आज की स्थिति में बहुत अंतर है। तब 74 विधायकों वाली भाजपा ने चुनाव पूर्व का वादा निभाते हुए 43 विधायकों वाले जदयू को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी राजी-खुशी दी। संकट बस एक फंसा कि नीतीश चाहते थे कि भाजपा की ओर से डिप्टी सीएम के रूप में सुशील कुमार मोदी उनके साथ रहें। नतीजा सामने भी आ गया, जब बीच में ही भाजपा से गठबंधन तोड़कर नीतीश महागठबंधन के साथ हो लिए। सुमो के समन्वय को नीतीश अब भी याद करते हैं। खैर, अब ताजा हालात पर आएं। महागठबंधन में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही नीतीश कुमार ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से छत्तीस का आंकड़ा बना लिया। अब उस गणित के हिसाब से नीतीश आगे बढ़ भी चुके हैं। तेजस्वी को राजकाज सौंपने की बात उठाई जाती रही है, लेकिन फिलहाल इसकी उम्मीद शून्य है। कुर्सी छोड़कर नीतीश पैदल आगे बढ़ेंगे, राजनीतिक विश्लेषक ऐसा मानने को तैयार नहीं। फिर भी वह तेजस्वी को कमजोर नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें आगे की लड़ाई के लिए बिहार में यह योद्धा चाहिए। इसके लिए नीतीश कुमार खरमास के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार जरूर करेंगे। 26 जनवरी तक यह विस्तार हो जाएगा।

कुशवाहा या कोई भी तेजस्वी के बराबर असंभव…

उपेंद्र कुशवाहा को उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा,यह बात शुरू से निराधार थी। यह खबर के रूप में जहां से चली, सवाल वहीं पर है। और उसके बाद कुशवाहा का मुंह भी जबरन खुलवा लिया गया कि वह सपना देख रहे हैं। नीतीश कुमार इसके साथ ही उपेंद्र कुशवाहा को बहुत आगे बढ़ाने के मूड में इसलिए भी नहीं हो सकते हैं, क्योंकि 2020 में वह इनकी तत्कालीन पार्टी RLSP का जनाधार देख चुके हैं। रालोसपा ने 99 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें 94 की जमानत जब्त हो गई थी। बाकी पांच भी कुछ करामात नहीं दिखा सके थे। इसके अलावा उन्होंने पहले टर्म में कुशवाहा वोट साधने के लिए जदयू के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी उमेश कुशवाहा को दी और इस बार तो संगठन चुनाव के नाम पर उन्हें उतारकर सीधा जीत की दहलीज तक पहुंचाया। वैसे भी, नीतीश को जानने वाले जानते हैं कि कुशवाहा या कोई भी फिलहाल तेजस्वी के समकक्ष कोई नहीं होगा। ऐसा इसलिए भी कि राष्ट्रीय जनता दल जदयू के मुकाबले विधानसभा में लगभग दोगुनी ताकत के साथ मौजूद है। जदयू के चुनाव में जीतकर 43 विधायक आए थे। उसने बसपा-लोजपा के इकलौते विधायकों को मिलाकर अपनी संख्या 45 कर ली है। जबकि, राजद ने विधानसभा चुनाव में ही 75 सीटें जीती थीं। राजद ने अपनी 75 सीटों में से कुढ़नी की सीट भले गंवाई, लेकिन इससे पहले उसने बोचहां की वीआईपी वाली सीट अपने हिस्से की और ओवैसी की पार्टी के पांच में से चार विधायक मिला लिए। अनंत सिंह को हटाए जाने से खाली मोकामा वाली सीट पर उपचुनाव में राजद ने कब्जा कायम रखा था। इसलिए, आज की तारीख में राजद के खाते में 79 विधायकों की शक्ति है।

मंत्रिमंडल में राजद-कांग्रेस के हिस्से मिलेगा क्या?

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार में राजद की खाली हुई मंत्रियों की सीटें भरी जाएंगी और कांग्रेस के लोग आएंगे। उधर कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने राज्य मंत्रिमंडल में जगह बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री से मुलाकात का पहले ही जिक्र किया था। ऐसे में अभी के हालात देखें। मुख्यमंत्री को हटाते हुए जदयू के सिर्फ विधानसभा प्रतिनिधियों की संख्या के हिसाब से देखें तो मंत्री प्रतिशत 24.4 है, जबकि उप मुख्यमंत्री को मिलाकर राजद का मंत्री प्रतिशत 18.98 है। जब यह सरकार बनी थी, तब कुल विधायक संख्या के 21.51% मंत्री थे। अब विशेषज्ञों के अनुसार, राजद को वही दो मंत्रीपद मिलने की उम्मीद है, हालांकि तेजस्वी तीन के लिए प्रयासरत हैं। संभव है कि संख्या तीन बढ़ भी जाए। दूसरी तरफ, कांग्रेस के 19 विधायक रहते उसके मंत्रियों की संख्या दो ही है, यानी महज 10.52 प्रतिशत। ऐसे में कांग्रेस के दो मंत्रीपद लगभग फाइल हैं, ताकि यह प्रतिशत 21 के पास पहुंच जाए।

तुरुप का पत्ता वामपंथी को भी मिल सकता है मौका आ सकते हैं साथ…

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी हालत में वाम दलों को साथ लाना चाह रहे हैं। महागठबंधन की सरकार अस्तित्व में आई, तभी से। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि वामपंथी दल सरकार के साथ रहते हुए भी अक्सर विधानसभा में सत्ता के खिलाफ खड़े भी हो जाते हैं। नीतीश भाजपा को छोड़ अब किसी के साथ दुश्मनी नहीं रखना चाहते और वामदल कर्म-व्यवहार-सोच से भाजपा के खिलाफ है। ऐसे में दुश्मन का दुश्मन मानते हुए भी नीतीश वाम दलों को साथ लाने के लिए प्रयासरत हैं। 15 जनवरी से 26 जनवरी के बीच संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के लिए वाम दलों के पास ऑफर भी है। 12 विधानसभा सदस्यों वाली सीपीआई (एमएल) के विधायक दल के नेता महबूब आल ने कहा- सांप्रदायिक ताकतों और भाजपा को कमजोर करने वाली यह सरकार हमें पसंद है और ऑफर आया हुआ भी है। हम बाहर से साथ हैं, ताकि जनहित के लिए सरकार पर दबाव बना सकें। उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल होने का इरादा तो नहीं जताया, लेकिन ‘जनहित’ में यह संभव तो हो ही नही सकता है। सीपीआई के विधायक राम रतन सिंह को सचेतक बनाकर एक तरह से सरकार में शामिल कर लिया गया है। सीपीआई विधायक सूर्यकांत पासवान ने कहा भी कि ऑफर की जानकारी नहीं, लेकिन विचार तो किया ही जा सकता है। ऐसे में इस दल का जुड़ना भी असंभव नहीं है। सीपीआई (एम) के दोनों विधायकों का नंबर बंद मिला।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ जदयू के मंत्री…

विजय कुमार चौधरी
बिजेंद्र प्रसाद यादव
अशोक चौधरी
श्रवण कुमार
लेशी सिंह
मदन साहनी
संजय कुमार झा
शीला कुमारी
सुनील कुमार
जयंत राज
मोहम्मद ज़मा खान

उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के साथ राजद के मंत्री..

आलोक कुमार मेहता
तेज प्रताप यादव
सुरेंद्र प्रसाद यादव
डॉ. रामानंद यादव
ललित कुमार यादव
समीर कुमार महासेठ
डॉ. चंद्रशेखर
अनिता देवी
जितेंद्र कुमार राय
कुमार सर्वजीत
डॉ. शमीम अहमद
शाहनवाज
सुरेंद्र राम
मोहम्मद इस्राइल मंसूरी

हटाए जा चुके राजद के दो मंत्री…

कार्तिक कुमार
सुधाकर सिंह

कांग्रेस से फिलहाल मंत्री…

मो. आफाक आलम
मुरारी प्रसाद गौतम

हम से फिलहाल मंत्री

संतोष कुमार सुमन

इकलौते निर्दलीय भी मंत्री