आईसीडीएस और यूनीसेफ ने विश्व स्तनपान सप्ताह पर वेबिनार का किया आयोजन, वक्ताओं ने कहा “बॉटल-फीडिंग फ्री विलेज बनाने की जरूरत

आईसीडीएस और यूनीसेफ ने विश्व स्तनपान सप्ताह पर वेबिनार का आयोजन किया. इसमें 500 से अधिक लोगों ने भाग लिया. आईसीडीएस के निदेशक आलोक कुमार ने कहा कि “स्तनपान एक नेचुरल वैक्सीन है। जब कोई वैक्सीन नहीं थी तब स्तनपान था। कोविड -19 सेंसिटिव स्तनपान और एक ’बोतल द्वारा दूध पिलाने से मुक्त गाँव’ के बारे में जानकारी देने के लक्ष्य से। श्री कुमार ने प्रतिभागियों को स्तनपान का महत्व समझाया और कैसे यह पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण (स्टंटिंग और वेस्टिंग) और उनकी मृत्यु-संख्या घटा सकता है। स्तनपान बच्चे के लिए पहले टीके की तरह होता है, जब टीके नहीं थे तब स्तनपान था, तो स्तनपान बच्चे के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगर एक माँ कोवीड पॉजिटिव है तो वह भी अपने बच्चे को स्तनपान करवा सकती हैं। लेकिन उस माँ को कुछ सावधानियां बरतनी पड़ेगी । अगर माँ बहुत बीमार है तो वह होने बच्चे को “एक्सप्रेस दूध“ की तकनीक से दूध निकल सकती है.

स्तनपान को बढ़ाने में बहुत चुनौतियां

उन्होंने कहा कि स्तनपान को बढ़ाने में बहुत चुनौतियां हैं, चाहे यह अंधविश्वासी हो, गलत जानकारी हो. आज हम सब एक शपथ लेते हैं कि हमने इससे एक वैज्ञानिक तरीके से समझाना है जिससे हमारा देश एक सुन्दर भविष्य की तरफ जाए।

बोतल द्वारा दूध पिलाने से मुक्त गाँव“ बनाने की शपथ

वहीं आईसीडीएस की सहायक निदेशक डॉ. श्वेता सहाय ने प्रतिभागियों को बोतल या डब्बा बंद दूध के 21 ख़तरों के बारे में बताया। उन्होंने फिर प्रतिभागियों को “बोतल द्वारा दूध पिलाने से मुक्त गाँव“ बनाने की शपथ लेने को कहा। ृबोतल द्वारा दूध पिलाने से मुक्त गाँव’ की गाइडलाइन्स जल्द ही जारी की जाएंगी। हमारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा को कोशिश करनी होगी की कोई भी माँ अपने 6 माह के बच्चे को बोतल या डब्बा बंद दूध नहीं पिला रही है। हर महीने लेडी सुपरवाइजर गावों का भ्रमण करेंगी और हर तीन महीने बाद वह ज़िला में रिपोर्ट करेंगी और हर तीन महीने में ज़िला स्तर पर इसके बारे में बैठक होगी। जब कोई गांव बोतल और डब्बा बंद दूध से मुक्त हो जा ये तो वह उनको प्रमुख सरकारी अधिकारी से पुरस्कार दिलवाएं और जो माताओं ने इस काम को बढ़ावा देकर सफल करवाया है वह उनको पुरस्कार दिलवाएं। इसकी गाइडलाइन्स जल्द ही जारी की जाएंगी। “माँ अगर सक्षम है और बच्चे को दूध नहीं मिल पा रहा तो हम सब के लिए यह चिंता का विषय है।“

मां के दूध में एंटीबॉडीज़ होती है

तकनीकी सेशन की शुरुआत में यूनीसेफ के पोषण विशेषज्ञ रबी नारपयन परही ने कहा कि स्तनपान एक मशीनी कार्य नहीं है, अगर माँ और बच्चे को एक अच्छा माहौल मिलेगा तभी वह स्तनपान करवा पायेगी। श्री परही ने बहुत अच्छा सुझाव दिया और कहा की हमे किशोर और किशोरियों को भी स्तनपान के बारे में बताना चाहिए ताकि जब वह भी मां- बाप बने अपने शिशु का समझदार और जिम्मेदार तरीके से ध्यान रख सकें।
कोविड- 19 का वायरस माँ के दूध से बच्चे में नहीं जा सकता। अगर एक मां कोरोना की मरीज़ हैं तो स्तनपान करवा सकती हैं, मां के दूध में एंटीबॉडीज़ होती है, तो वह शिशु की रोगक्षमता बढ़ाती है।। मगर माँ को कुछ सावधानियां बरतनी पड़ेगी जैसे, हमेशा ट्रिपल लेयर मास्क पहनकर रखना चाहिए, ख़ास तौर पर स्तनपान करते समय, अपने स्तन पर अगर छींका यां ख़ासा हो तो साबुन से साफ़ करना, अगर माँ अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पा रही है क्योंकि वह वायरस की वजह से कमज़ोर है तो दूध स्तन से निकाल कर साफ़ बर्तन में से शिशु को पिलाये।

अज्ञानता के कारण मां स्तनपान नहीं करा पाती

वर्ल्ड विज़न सेह डेनिसन ने स्तनपान को प्रभावित करने वाले कारणों के बारे में कहा की दफ़्तर का काम, घर का काम, परिवार से समर्थन न होना, मानसिक स्वास्थ ख़राब होना जाना और स्तनपान करने का सही तरीका का ज्ञान न होना, कुछ कारण हैं जिसकी वजह से माँ स्तनपान नहीं करा पाती। उन्होंने कहा की अगर स्तनपान सीखना है और माँ को प्रभावित करना है तो हमे उसे स्तनपान के बारे में शिक्षित करना होगा, उसका सशक्तिकरण करना होगा और सक्षम करना होगा ताकि स्तनपान के लिए एक सकारात्मक वातावरण बन जाए। उनका ज्ञान हमारी फ्रंट लाइन वर्कर्स जैसे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा को सबसे महत्वपूर्ण लगा क्योंकि वह यह सब अपने रोज़ के काम में इस्तेमाल कर सकती हैं।

डॉ अनुपम श्रीवास्तव (अलाइव – थ्राइव) ने स्तनपान और कोवीड से सम्बंधि गलत सूचना या ज्ञान के बारे में चर्चा करी. उनके साथ यूनीसेफ की पोषण अधिकारी डॉ. शिवानी दर ने भी प्रतिभागियों के सवालों का जवाब दिया। प्रतिभागियों के सवाल ज़मीनी स्तर से जुड़े हुए थे। स्तनपान, ऊपरी आहार, बीमारी (माँ और बच्चे की), गर्भावस्था (6 माह के अंदर वाली भी) और 40 साल की ऊपर माताओं के स्तनपान, माताओं जो स्तनपान से डरती हैं, अगर माँ सी- सेक्शन करवाया है, और माता के स्तन पर चोट वह स्तनपान कैसे करवाए, ऐसे विषयों के बारे में चर्चा हुई। डॉ. शिवानी दर ने कहा, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माँ के आत्मविश्वास का निर्माण करना है कि वह सभी परिस्थितियों में स्तनपान करप् सकती है और परामर्श और समर्थन के माध्यम से किसी भी व्यावहारिक समस्याओं का हल कर सकती है।“

वेबिनार के अंत में डीपीओ औरंगाबाद ने एक कविता “माँ क्यों नहीं पिलाती तुम दूध मुझे“ सुनाई। यह कविता उनके अनुभव से प्रभावित थी और इस कविता में एक बच्चा अपनी माँ का दूध पीना चाहता है और अपनी माँ से स्तनपान की विनती कर रहा हैं।

इस वेबिनार में आईसीडीएस, एनएनएम, डीपीओ और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने बिहार के दूर दूर के गावों
से ज़ूम कॉल पर या यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीम से भाग लिया।