केंद्र के नए बिल से दिल्ली एलजी की बढ़ेंगी शक्तियां, केवल रबड़ स्टांप बनकर रह जाएंगे केजरीवाल ?

केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक (2021) पेश किया गया है, जो दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों में बढ़ोतरी करने वाला है. दिल्ली में एक बार फिर एलजी और सीएम के अधिकारों को लेकर जंग छिड़ गई है. इस नए विधेयक के बाद राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि इस नए बिल के बाद दिल्ली में अरविंद केजरीवाल केवल नाममात्र के मुख्यमंत्री या फिर केंद्र का रबर स्टाम्प बनकर रह जाएंगे?

विधेयक में मिलेंगी उप-राज्यपाल को कई विवेकाधीन शक्तियां

गृह मंत्रालय की ओर से पेश किए गए विधेयक में उपराज्यपाल को और अधिक शक्तियां प्रदान करता है. यह विधेयक उप-राज्यपाल को कई विवेकाधीन शक्तियां देता है, जो दिल्ली के विधानसभा से पारित कानूनों के मामले में भी लागू होती हैं. इसका मतलब यह हुआ कि मंत्रिमंडल को कोई भी कानून लागू करने से पहले उपराज्यपाल की ‘राय’ लेना ज़रूरी होगा.

गौरतलब है कि 1991 में संविधान के 239एए अनुच्छेद के जरिए दिल्ली को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया था. इस क़ानून के तहत दिल्ली की विधानसभा को क़ानून बनाने की शक्ति हासिल है, लेकिन वह सार्वजनिक व्यवस्था, जमीन और पुलिस के मामले में ऐसा नहीं कर सकती है

क्या कहता है 1991 अधिनियम

1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 कहता है कि उपराज्यपाल के सभी फैसले जो उनके मंत्रियों या अन्य की सलाह पर लिये जाएंगे, उन्हें उपराज्यपाल के नाम पर उल्लिखित करना होगा. एक प्रकार से इसको समझा जा रहा है कि इसके जरिए उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के रूप में परिभाषित किया गया है.

दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ एलजी होगा

वहीं इसको लेकर सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अगर ये बिल पास होता है, तो दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ एलजी होगा और हर निर्णय के लिए एलजी की मंजूरी जरूरी होगी. आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि दिल्ली की जनता ने सरकार को वोट दिया है, ना कि उपराज्यपाल को, ऐसे में ये बिल दिल्ली की जनता के साथ धोखा है.