प्रोजेक्ट डॉल्फिन: सोंस का संरक्षण ” पर किया गया वेब-गोष्ठी, 1990 से ही डॉल्फिन संरक्षण पर काम कर रही बिहार सरकार

भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय पटना द्वारा आज ” प्रोजेक्ट डॉल्फिन: सोंस का संरक्षण ” विषय पर वेब-गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में वेब-गोष्ठी को संबोधित करते हुए बिहार सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव  दीपक कुमार सिंह ने डॉल्फिन के संरक्षण पर बिहार सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि बिहार सरकार के तरफ से 1990 से ही डॉल्फिन संरक्षण पर काम हो रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा 15 अगस्त 2020 को लाल किले के प्राचीर से प्रोजेक्ट डॉल्फिन के घोषणा किए जाने के बाद इस प्रोजेक्ट में काफी सहायता मिलेगी क्योकि अब यह एक राष्ट्रीय प्रोजेक्ट होगा। उन्होंने बताया कि 5 अक्टूबर 2020 को या उससे पहले ही पटना मे राष्ट्रीय डॉल्फिन रिसर्च केंद्र का शिलान्यास किये जाने की उम्मीद है। इसकी सारी औपचारिक बाधाएं दूर की जा चुकी हैं।

पटना मे राष्ट्रीय डॉल्फिन रिसर्च केंद्र का शिलान्यास किये जाने की उम्मीद

दीपक कुमार सिंह ने कहा कि डॉल्फिन प्रोजेक्ट के राष्ट्रीय प्रोजेक्ट हो जाने से विभिन्न स्टेकहोल्डरों जैसे राष्ट्रीय जलमार्ग, पर्यावरण एवं वन विभाग के बीच समन्वय स्थापित होगा और डॉलफिन संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक पहल हो सकेगा। इससे दूसरे जलीय जीवों समेत सोंस को सही तरीके से सुरक्षा व संरक्षा प्रदान करने में आसानी होगी।

डॉल्फिन की सुरक्षा में होने वाली बाधाओं को चिन्हित किया जाना चाहिए

पीआईबी पटना के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि डॉल्फिन कीसुरक्षा हमारे इकोसिस्टम के लिए और साथ ही बायोडायवर्सिटी को संतुलित रखने के लिए बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि डॉल्फिन की सुरक्षा में सबसे बड़ी बाधा नदियों और जलाशयों पर बड़े-बड़े डैम बराज बनाने से होते हैं। उन्होंने कहा कि डॉल्फिन की सुरक्षा में होने वाली बाधाओं को चिन्हित किया जाना चाहिए और इस जलीय जीव के संरक्षण सही तरीके से किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि गांगेय डॉल्फिन विश्व में पायी जाने वाली नदी डॉल्फिन की चार प्रजातियों में से एक है। डॉल्फिन के जीवन के लिए आज पहले से ज्याद खतरा बढ़ गया है।अत्यधिक मछली पकड़ना, नदियों में बढ़ती इंसानी गतिविधियां, नदियों में बढ़ता प्रदूषण और एक स्वस्थ इकोसिस्टम का अभाव इन्हें विलुप्त होने के कगार पर ले जा सकता है।

डॉल्फिन हैबिटेट के पूरे इकोसिस्टम का संरक्षण जरूरी

वहीं बिहार के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन प्रभात कुमार गुप्ता ने गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि डॉल्फिन के संरक्षण के लिए डॉल्फिन हैबिटेट के पूरे इकोसिस्टम का संरक्षण जरूरी है, बिना उसके सिर्फ डॉल्फिन का संरक्षण संभव नहीं है। श्री प्रभात कुमार ने विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सैंक्चुअरी द्वारा डॉल्फिन संरक्षण पर किए जा रहे कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सेंक्चुअरी पूरे देश में एकमात्र डॉल्फिन संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था है। उन्होंने कहा कि 2017-18 में गंगेटिक डॉल्फिन का सर्वेक्षण गंडक, घाघरा और गंगा के तीन स्ट्रेचेज में किया गया जिससे 1464 डॉल्फिंस का पता चला, जो पूरे देश में नदीय डॉल्फिन की 50% संख्या है। श्री प्रभात कुमार ने डॉल्फिंस को खतरे से बचाने के लिए 2017 में बिहार सरकार द्वारा इनकरेजमेंट कम कंपनसेशन स्कीम के बारे में बताया। इस योजना के तहत बिहार सरकार की तरफ से डॉल्फिन को बचाने पर मछुआरों को रु 17500 जाल खर्च के रूप में और ढाई हजार प्रोत्साहन राशि के रूप में मुआवजा दिया जाता है। जबकि एक आम नागरिक को ढाई हजार रुपये मुआवजा और ढाई हजार रुपये प्रोत्साहन के रूप में दिया जाता है।श्री गुप्ता ने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलिफेंट के तर्ज पर ही अब प्रोजेक्ट डॉल्फिन की घोषणा के बाद इस जलीय जीव के सुरक्षा और संरक्षण में काफी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि 5 अक्टूबर 2009 को बिहार में पहला गंगेटिक डॉल्फिन सेंक्चुरी का नीव रखा गया था। इसी कारण 5 अक्टूबर को बिहार राज्य में डॉल्फिन डे के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा gangetic डॉल्फिन को नदीय इकोसिस्टम का फ्लैगशिप स्पीसीज माना जाना चाहिए ,क्योंकि किसी पानी में डॉल्फिन का होना उस पानी की शुद्धता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि पूरे भारतवर्ष की नदियों का 50% डॉल्फिन बिहार में पाया जाता है। उन्होंने बिहार स्टेट को डॉल्फिन स्टेट घोषित करने का सुझाव भी दिया।

डॉल्फिन संरक्षण पर काम करने वाले 80% विशेषज्ञ सिर्फ बिहार से

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, भारत सरकार में वैज्ञानिक-ई एवं प्रभारी अधिकारी गोपाल शर्मा ने डॉल्फिन संरक्षण पर किए गए अपने कार्यों और अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि डॉल्फिन सिर्फ गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी में ही पाई जाती है बाकी दूसरी नदियों में नहीं पाई जाती है। श्री शर्मा ने नदीय डॉल्फिंस की चार प्रजातियों के बारे में भी विस्तार से बताया।श्री शर्मा ने डॉल्फिंस के प्रजनन से लेकर बड़े होने, रहन सहन और खान पान के साथ ही उनके बायोलॉजी और एनाटॉमी के बारे में भी विस्तार से बताया । श्री शर्मा ने डॉल्फिंस के संरक्षण और विकास के लिए उनके हैबिटेट के विकास, डॉल्फिन के शिकार रोकने और साइंटिफिक मेजर से इस पर रिसर्च को बढ़ावा देने का सरकार से अनुरोध किया। उन्होंने बिहार में नेशनल डॉल्फिन रिसर्च सेंटर की स्थापना को लेकर बिहार सरकार से इस पर जल्द अमल करने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि पूरे देश में डॉल्फिन संरक्षण पर काम करने वाले 80% विशेषज्ञ सिर्फ बिहार से हैं।

बिहार स्टेट को डॉल्फिन स्टेट बनाने की भी बात

वेबीनार में अतिथि वक्ता के रूप में अररिया जिले के डॉल्फिन शोधार्थी सूदन सहाय ने डॉल्फिन के संरक्षण और सुरक्षा पर अपने दीर्घकालिक अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि डॉल्फिन संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओं और मछुआरों के बीच बात चीत होनी चाहिए। उन्होंने भी बिहार स्टेट को डॉल्फिन स्टेट बनाने की भी बात कही।

 छात्रों के साथ जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन एक अच्छा प्रयास

अध्यक्षीय भाषण के दौरान एसके मालवीय, अपर महानिदेशक, आरओबी एवं पीआईबी, पटना ने कहा कि प्रोजेक्ट डॉल्फिन भारत सरकार की एक अच्छी पहल है। इससे लोगों में इस जलीय जीव को लेकर जानकारी होगी। इसके लिए स्कूल-कालेज के छात्रों के साथ जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन एक अच्छा प्रयास होगा। इससे डॉल्फिन संरक्षण के लिए एक फौज खड़ी हो सकेगी । उन्होंने कहा कि इस परियोजना से पर्यटन को भी बहुत फायदा मिलेगा।

कार्यक्रम का संचालन संजय कुमार, सहायक निदेशक, पीआईबी, पटना तथा धन्यवाद ज्ञापन इफतेखार आलम, सूचना सहायक, पत्र सूचना कार्यालय, पटना ने किया। वेब गोष्ठी में  विजय कुमार, निदेशक आरओबी एवं दूरदर्शन (न्यूज), पटना सहित सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विभिन्न विभागों के अधिकारी-कर्मचारी तथा अन्य प्रतिभागी भी शामिल थे।