क्या है सतुआन की विशेषता, क्यों मनाते हैं हम सतुआन?


भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व मेष संक्रांति (बैशाखी) आज पूरे देश में परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाई जा रही है। इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सतुआन के नाम से जानते हैं। इस दिन सूर्य मेष राशी में प्रवेश करेंगे और एक माह से चल रहे खरमास का समापन होगा और मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे।

इस संबंध में आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने बताया कि भारतीय परंपरा में सूर्य की दो संक्रांतियां बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये दोनों संक्रांतियां खरमास के ठीक बाद पड़ती हैं। पहली खरमास वृहस्पति की राशी धनु से जब सूर्य मकर में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति होती है। इस दिन खिचड़ी का पर्व मनाया जाता है। दूसरी खरमास वृहस्पति की राशी मीन से जब सूर्य मेष में प्रवेश करते हैं तो इसे मेष संक्रांति कहते हैं। इस दिन सतुआन का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। आचार्य ने बताया कि वृहस्पति की दो राशियां हैं।

धनु और मीन। इन दोनों राशियों में जब सूर्य जाते हैं तो खरमास शुरू हो जाता है। जब सूर्य इन राशियों से दूसरी राशी में संक्रमण करते हैं तो खरमास समाप्त होता है।
ज्योतिषाचार्य ने कहा कि खरमास के कारण विगत एक माह से जो मांगलिक कार्य अवरुद्ध चल रहा था। वह मेष संक्रांति के दिन से प्रारंभ हो जाएगा। पं. बृजेश पाण्डेय ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस दिन सत्तू दान करना श्रेयस्कर होता है। सत्तू खाने-खिलाने के साथ ही ऋतु फल, शर्करा, मिष्ठान्न आदि सत्तू के साथ दान करना बहुत ही पुण्य माना गया है।