विवेक चंद्र की कलम से..
विश्व साइकिल दिवस की शुभकामनाएं…उस दिन को याद करें जब आप साईकिल से स्कूल जाते थे, या फिर आपकी वो पहली साईकिल , या फिर दोस्त की साईकिल पर साथ बैठगप्पे लड़ाते कहीं जाना, और चढ़ाई वाले सड़क पर आपके उतर जाने का अाग्रह और वीरता दिखाते हुए दोस्त का कहना की बैठे रहो , मैं चढ़ाई पार कर लूंगा, या फिर बाबूजी की साईकिल । डाकबाबू की साईकिल की घंटी और फेरीवाले के साईकिल में आंडियो कैसेट के रील की लगी झालर। न ट्राफिक का झंझट न तेल के महंगे होते भाव की चिंता। क्या बाईक और कार, साईकिल वाला सुख दे सकते हैं ! नहीं न तो फिर क्यूं हम दिखावे के पीछे अपनी इस प्यारी साईकिल को कुर्बान कर रहे हैं , चलिये फिर साईकिल से दोस्ती कर लें और घंटी बजाते निकल पड़े मुस्कुराहटों के सफर पर।
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